गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
गूंगे का गुड़ का कहूँ, मन जानत है खाइ ।
त्यों राम रसायन पीवतां, सो सुख कह्या न जाइ ॥१४॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जैसे गूंगा पुरुष गुड़ खाकर उसका रसास्वादन मन में जानते हुए भी वर्णन नहीं कर सकता है, उसी प्रकार व्यापक राम का दर्शनामृत पान करने में जो अलौकिक सुख उत्पन्न होता है, उसका लौकिक उपमाओं द्वारा मन इन्द्रियों से वर्णन नहीं किया जा सकता है ॥१४॥ 
समाधिनिर्धूतमलस्य चेतसो 
निवेशितात्मनि यत्सुखं भवेत् । 
न तद् गिरा वर्णयितुं समर्था 
स्वयं तदन्त:करेण गृह्यते ॥ 
इन्दव छन्द -
होत विनोद जुतो अभिअन्तर, 
सो सुख आपनो आपहि पैये ।
बाहिर कूँ उमग्यो पुनि आवत, 
कंठ तैं सुन्दर फेरि पढैये ॥ 
स्वाद निवेरि निवेरयो न जात सु, 
ज्यूं गुड़ गूंगहि जू नित खैये। 
क्या कहिये कहितैं न बने कछु, 
जो कहिये, कहते हि लजैये ॥ 
(श्री दादू वाणी ~ हैरान का अंग) 
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साभार : Bhadra Dhokai ~ 

स्नेह को कभी समझा ही नहीं जा सकता 
बस उसकी उठती रश्मियों को 
आत्मा तक महसूस किया जा सकता है . 
ये कैसा साथ है तुम्हारा ! 
जो हर पल, हर शब्द मेरा साथ देता भी है 
और किसी को महसूस नहीं होने देता हैं . 
बावरी हूँ मैं तुम्हारी. 
कितनी उमंगें उठा देते हैं तुम्हारे ये शब्द, 
जीने की एक नयी अदा देते हैं, 
बेजान पड़ी इस जिन्दगीं में, 
ये ही मेरा सत्य हैं, आनंद है . 
तुम्हारा आलौकिक साथ ! 
॥ अनुभूति ॥

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