॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
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*दादू राखणहारा राखै, तिसे कौन मारै ।*
*उसे कौन डुबोवे, जिसे सांई तारै ॥*
*बाकी कौन बिगारै, जाकी आप सुधारै ।*
*कहै दादू सो कबहूँ न हारै, जे जन सांई संभारै ॥८१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परमेश्वर सर्वशक्तिवान, सबकी रक्षा करने वाला, जिसको अपनी शरण में रखे, उसको इस संसार में मारने वाला कौन है ? और वह परमेश्वर जिसको संसार समुद्र से तारै, उसे काम आदि दोष क्या डूबो सकते हैं ? ब्रह्मऋषि कहते हैं कि परमेश्वर के अनन्य भक्त, सदैव परमेश्वर का स्मरण करते हैं । उनकी संसार में कभी हार नहीं होती है । वे ही मनुष्य देह की बाजी जीत कर जाते हैं ॥८१॥
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*निर्भय बैठा राम जप, कबहूँ काल न खाइ ।*
*जब दादू कुंजर चढै, तब सुनहॉं झख जाइ ॥८२॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परमेश्वर के अनन्य भक्त, काल - कर्म से निर्भय होकर अन्तःकरण में राम का स्मरण करते हैं । उन पुरुषों को कभी काल दण्ड देने को समर्थ नहीं है । जैसे कोई हाथी पर बैठा है, तब कुत्ते उसको देखकर भौंकते हैं, पर उसका बिगाड़ कुछ नहीं कर पाते । अर्थात् नामरूपी हाथी पर जो भक्त बैठे हैं, उनका कुत्तेरूप सांसारिक विषयी पामर, क्या बिगाड़ कर सकते हैं ? जैसे मीरां आदि अनेक संत भक्त हो गये ॥८२॥
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*कायर कूकर कोटि मिलि, भौंके अरु भागैं ।*
*दादू गरवा गुरुमुखी, हस्ति नहीं लागैं ॥८३॥*
इति शूरातन का अंग सहित सम्पूर्ण २४॥साखी ८३॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! भगवान से विमुखी निन्दक संसारीजन, भक्तों को निन्दा आदि के द्वारा नाना शारीरिक कष्ट देते हैं । किन्तु हाथी की भांति गरवा = गंभीर और गुरुमुखी गुरु उपदेशों में संलग्न हुए संतजन, सर्व व्यवहारों से निष्काम होकर, स्वस्वरूप में ही मग्न रहते हैं । उनका संसारीजन कुछ नहीं बिगाड़ कर पाते ॥८३॥
इति शूरातन का अंग टीका सहित सम्पूर्ण २४॥साखी ८३॥
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