बुधवार, 11 दिसंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(६५/६६)


॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*शूरातन सहजैं सदा, साच सेल हथियार ।*
*साहिब के बल झूझतां, केते लिये सु मार ॥६५॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सतगुरु के साचे शब्द उस शूरवीर के भाले हैं, चितावणि उपदेश ही तो जिनके हथियार हैं, और परमेश्‍वर का पतिव्रत - धर्म ही जिनका बल है । ऐसे पुरुषों को काम - क्रोध आदि विकार, शब्द - स्पर्श आदि विषय, कोई सता नहीं सकते, क्योंकि उसने इन सबका दमन किया है ॥६५॥
साच सेल कर ज्ञान खड़्ग, मारे क्रोध रु काम । 
निरभै पद नेरे मिले, सत्य सदा हरि राम ॥
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*दादू जब लग जिय लागैं नहीं, प्रेम प्रीति के सेल ।*
*तब लग पिव क्यों पाइये, नहिं बाजीगर का खेल ॥६६॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जब तक अन्तःकरण में प्रेमाभक्ति और प्रभु - प्रीति के शब्दरूप सेल नहीं लगते, तब तक परमेश्‍वर की प्राप्ति, साधक पुरुषों को होना असम्भव है । यह कोई बाजीगर का खेल नहीं हैं, जो हर एक कोई देख सके ॥६६॥
(क्रमशः)

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