बुधवार, 11 दिसंबर 2013

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू देखौं निज पीव को, देखत हि दुख जाइ । 
हूँ तो देखौं पीव को, सब में रह्या समाइ ॥७६॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अब तो परमात्मा को निज रूप करके ही देखते हैं, उसको देखते ही सम्पूर्ण दुःख कहिए, आधि - व्याधि से मुक्त हो गए हैं । अब हम तो रात - दिन ब्रह्म का ही दर्शन करते हैं, जो सबमें समाया हुआ है, वही अखंडित और निरंतर इस विश्व को प्रकाशित करता है । यह तो अत्यन्त आश्चर्य की बात है कि द्वैत और अद्वैत की जो कल्पना है, वह माया का बड़ा भारी व्यामोह है । 
बाहर मांझ दर्शन भये, ह्रदय तप्त गई मोर । 
जहाँ जहाँ राखौं दृष्टिभर, तहाँ तहाँ देखौं तोर ॥ 
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दादू देखौं निज पीव को, सोई देखन जोग । 
परगट देखौं पीव को, कहाँ बतावैं लोग ॥७७॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! आत्मज्ञानी संतपुरुष, सर्वव्यापक ब्रह्मानन्द का ही अनुभव करते हैं । यही परम तत्वव सर्वत्र व्यापक है, सर्वश्रेष्ठ और सर्वत्र देखने योग्य है, प्रत्यक्ष साक्षात् निरावरण है । परन्तु सकाम कर्मों की प्रवृत्ति वाले लोग जप, तप, तीर्थ, यज्ञ, दान आदि में उसको बताते हैं, पर वस्तुतः उनमें है नहीं । 
सुन्दर देख्या सोधि के, सब काहु का ज्ञान । 
कोई मन मानै नहीं, बिना निरंजन ध्यान ॥ 
षट दर्शन हम खोजिया, जोगी जंगम शेख । 
सन्यासी अरु सेवड़े, पंडित भक्ता भेख ॥ 
त्रिभंगी छन्द ~ 
तो भक्ति न भावै दूर बतावै, तीरथ जावै फिर आवै । 
जो कृतम गावै पूजा लावै, झूठ दृढावै बहिकावै ॥ 
अरु माला लावै तिलक बनावै, क्यूँ पावै गुरु बिन गेला । 
दादू का चेला भरम पछेला, सुन्दर न्यारा ह्वै खेला ॥ 
(श्री दादू वाणी ~ परिचय का अंग)

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