शनिवार, 14 दिसंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(७१/७२)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*दादू क्या बल कहा पतंग का, जलत न लागै बार ।*
*बल तो हरि बलवंत का, जीवै जिहिं आधार ॥७१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जैसे अपने आप स्वयं की रक्षा करने में असमर्थ बेचारा पतंग औरों की क्या रक्षा करेगा ? ऐसे ही काल के अधीन हुए विचारे पतंगरूप देवी - देवता जब स्वयं की रक्षा नहीं कर सकते हैं तो दूसरे जीवों की तो कर ही क्या सकते हैं ? इसलिये भक्तों के तो केवल एक प्रभु का ही आधार है ॥७१॥
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*राखणहारा राम है, शिर ऊपर मेरे ।*
*दादू केते पच गये, बैरी बहुतेरे ॥७२॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! हमारे तो केवल शिर पर रक्षा करने वाले एक राम जी महाराज ही हैं, किन्तु राम से विमुख करने के लिये, कितने ही काम - क्रोध आदि शत्रू, पच - पच कर थक गये अर्थात् मर गये । परन्तु हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ कर सके ॥७२॥
जगन्नाथ जन ब्रह्मबल, खल मिल दोस धरंत । 
सिंह छावर ही देख ज्यूं, जंबुक जोर करंत ॥
(क्रमशः)

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