शनिवार, 14 दिसंबर 2013

= स. त./६-७ =

*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“सप्तम - तरंग” ६/७)*
*इन्दव छन्द -* 
*श्री दादूजी आनन्दराम स्रुवा मिलन* 
जानत मोहि तपोधन ! साधु जु, 
नाम सुता यह कौन कहाई । 
दादु कहें - द्विज आनंद राम जु, 
बहिन स्रुवा मम गोद खिलाई । 
यों सुनि नागर नीर चल्यो दृग, 
चित्त् दशा वरण्यों नहिं जाई । 
दादु कही - कर्ता रचि हैं सब, 
सो सब बात हुई द्विज राई ॥६॥ 
आनन्दरामजी ने पूछा - हे तपस्वी साधु महात्मा जी ! मुझे पहिचानते हो ? और इस महिला का नाम जानते हो ? यह किसकी पुत्री है ? श्री दादूजी ने उत्तर दिया - आप विप्रवर आनन्दरामजी है, और यह मेरी बहिन स्रुवा है, जिसने मुझे बचपन में अपनी गोदी में बहुत खिलाया है । यों सुनकर नागर विप्र आनन्दराम जी सहित, नागर कुल के अन्य परिजनों की आँखों में भी, प्रेम, आत्मीयता और वात्सल्य के कारण आँसू छलक आये । उस समय उनकी स्रदय दशा अवर्णनीय थी । यह देखकर श्री दादूजी ने सान्त्वना देते हुये कहा - सृष्टिकर्ता ने जो विधान - रचना की थी, सब कुछ वही होना था । अत: हे द्विजवर ! धैर्य धारण करो ॥६॥ 
*मनोहर छन्द -* 
*पोस माता पितालोधीराम जी का शरीर छोड़ना* 
आप घर छाड़े जब तब तें उदास सब, 
अजहुं दरश करि भयो सुख सार जू 
बहिन स्रुवा पाँच वर्ष, ऐसी विधि हुई जान, 
अति दुख पाये प्रान, दियो करतार जू 
मात पिता दोऊजन, संग ही बिसारे तन, 
आप पीछे मास - गुण, पहुंचे र्स्वग - द्वार जू 
स्वामी कहे - विप्र सुनो, आप ज्ञानी शास्त्र गुनो, 
वेद हु पुराण सब लीजिये विचार जू ॥७॥ 
आनन्दराम जी अवरुद्ध कंठ को संभालते हुये बोले - आपने घर छोड़ा, तभी से सब उदास रहने लगे । आज दर्शन लाभ पाकर सुखी हुये है । आपकी बहिन 'स्रुवा’ पाँच वर्ष तक आपके वियोग में ऐसी दु:खी हुई, इसकी ऐसी दुर्दशा हुई कि प्राणों पर आ बनी । सृष्टिकर्ता की कृपा से जैसे तैसे प्राण बचे । आपके माता - पिता तो आपका वियोग सह ही नहीं सके । आपके घर छोड़ने पर तीन मास बाद ही दोनों ने संग - संग प्राण त्याग दिये और स्वर्ग को सिधार गये । स्वामीजी ने धीरज देते हुये कहा - हे विप्र ! सुनो, आप तो ज्ञानी हो, शास्त्रों के ज्ञाता हो, वेद पुराण उपनिषद् आदि सभी का ज्ञान - विचार रखते हो ॥७॥ 
(क्रमशः)

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