रविवार, 15 दिसंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(७३/७४)



॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*शूरातन विनती*
*दादू बल तुम्हारे बापजी, गिनत न राणा राव ।*
*मीर मलिक प्रधान पति, तुम बिन सब ही बाव ॥७३॥*
टीका ~ हे स्वामी ! हे बाप जी ! हमतो आपके बल के अर्थात् शक्ति के आश्रय हैं, फिर संसार के राणा, राव, राजा आदि को कुछ भी नहीं समझ रहे हैं । मीर हैं, मलिक हैं, प्रधान हैं, आपके बिना उन सबको त्यागे हैं अर्थात् उनसे हमारा क्या प्रजोजन है ? हम तो केवल आपका ही आसरा लेकर निर्भय हो रहे हैं ॥७३॥
संत गंठी को पीन है, साध न मानै संक । 
राम अमल माता रहै, गिने इन्द्र को रंक ॥
लूखी भाजी लौंन बिन, खाइ भजै हरि बंक । 
औरन पति को कहा गिनै, इन्द्र बापुरो रंक ॥
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*दादू राखी राम पर, अपणी आप संवाह ।*
*दूजा को देखूं नहीं, ज्यों जाणैं त्यों निर्वाह ॥७४॥*
टीका ~ हे प्रभु ! हमने तो अपनी सम्पूर्ण जीवन - लीला, आपके आसरे ही रखी है । हमारा सर्वस्व, हम आपके भेट करते हैं । आप हमको अपनी शरण में लेकर, भक्त - वत्सलता की प्रतिज्ञा को आप ही पूरी करें । हे प्रभु ! हमारे तो केवल आपका ही एक पतिव्रत है । इस हमारे जीव पर आप दया करके आप ही निबाहो, अर्थात् अपने प्रण को पूरा करो ॥७४॥
गरीबदास जी पूछियो, गुरु दादू सौं अन्त । 
तब या साखी से कह्यो, खुशी रहो सब सन्त ॥
प्रसंग ~ ब्रह्मऋषि दादूदयाल जी महाराज से उनके शिष्य गरीबदास जी महाराज ने पूछा कि महाराज ! हम लोग क्या करें ? उसके उत्तर में परम गुरुदेव बोले कि हमने तो परमेश्‍वर का पतिव्रत - धर्म धारण किया है । आप लोग भी इसी हमारे आदर्श को अपनाओ । परमेश्‍वर का पतिव्रत - धर्म धारण करके प्रसन्न रहो ।
(क्रमशः)

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