रविवार, 15 दिसंबर 2013

शून्य हि मारग आइया ७/१२

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*लै का अंग ७/१२*
*शून्य हि मारग आइया, शून्य हि मार जाइ ।*
*चेतन पैंडा सुरति का, दादू रहु ल्यौ लाइ ॥१२॥*
दृष्टांत - 
एक फकीर रु पातस्या, सुरति हि मक्के जाय ।
हेठ पड़े अरु अधर के, बेर दिखाये आय ॥३॥ 
साखी के तृतीय पाद - "चेतन पैंडा सुरति का" पर दृष्टांत है । एक बादशाह एक उच्च कोटि के फकीर के पास प्रतिदिन सत्संग को जाता था और साधन भी करता था । साधन द्वारा बादशाह को सुरति(संकल्प) का शरीर धारण करने की शक्ति प्राप्त हो गई थी । अतः वह प्रतिदिन सुरति के शरीर से मक्का जाता था । 
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एक दिन मक्का से लौटने समय एक पके हुये बेरों वाली बेरड़ी का वृक्ष मार्ग में मिला । उसके नीच पके हुये बेर पड़े थे । बादशाह उक्त फकीर के लिए नीचे पड़े हुए बेरों में से चार बेर उठा लाये । उक्त फकीर भी सुरति के शरीर से प्रतिदिन मक्का जाते थे । आते समय आज फकीर के समाने भी उक्त बेरड़ी का वृक्ष आ गया और उनको भी अपनी योग शक्ति से यह ज्ञात हो गया कि बादशाह इसके नीचे से चार बेर ले गया है । अतः फकीर भी उसकी शाखा चे चार पके हुये बेर तोड़ लाये । 
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फिर बादशाह फकीर के दर्सन करने गया तह वे चार बेर फकीर को भेंट करके कह - ये बेर मक्का के हैं । मैं प्रतिदिन मक्का जाकर नमाज पढ़ता हूं । फकीर ने कहा- तुम तो नीचे पड़े अशुद्ध बेर लाये थे । और मैं उसकी शाखा से पके हुये बेर तोड़ कर लाया हूँ । ये देखो ये बेर शुद्ध हैं । 
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तब बादशाह को ज्ञात हुआ कि ये भी प्रतिदिन मक्का जाते हैं । उक्त दोनों जैसे सुरति(वृत्ति) रुप शरीर से मक्का जाते थे, वैसे ही चेतन ब्रह्म के पास सुरति(वृत्ति) द्वारा ही जाना होता है । दादूवाणी में अन्यत्र भी कहा है - सुरति बिना को जाय । अर्थात ब्रह्माकर वृत्ति बिना ब्रह्म प्राप्ति नहीं हो सकती ।
(क्रमशः)

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