रविवार, 15 दिसंबर 2013

= स. त./८-९ =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“सप्तम - तरंग” ८-९)*
*इन्दव छन्द* 
*श्री दादूजी सब को समझाना*
देह धरी, अवतार गये कित, 
सिद्ध सुरासुर काल हु खाई ।
देव रू दैत्य निशाचर यक्ष जु, 
ते सब ही द्विज ! जात बिलाई ।
यो तन तो द्विज ! है क्षण भंगुर, 
ज्ञान विचार हरी गुण गाई ।
मोह तजो जग की ममतादिक, 
राम भजो तब होय भलाई ॥८॥ 
जिसने भी इस सृष्टि में देह धारण की है, उसे एक दिन इस देह को त्यागना ही पड़ता है । चाहे कोई अवतारी पुरूष हो या सिद्ध, देव हो असुर, दैत्य हो या यक्ष निशाचर - सभी को यह काल अपने समय पर निगल गया । स्वयं ईश्वर के अनेक अवतार हुये, वे सब कहाँ विलुप्त हो गये ? अत: इस संसार में, विश्व ब्रह्मांड में सदा स्थिर कोई नहीं है । सबकी अपनी - अपनी अवधि है । और इस मृत्युलोक में तो शरीर क्षण भंगुर है, न जाने कब, किस कारण से समाप्त हो जाय । अत: ज्ञान विचार पूर्वक मोह छोड़ो, और श्री हरि के गुण गाकर इस जीव का कल्याण करो । जगत् की ममता मोह में फँसाती है । केवल राम भजन में ही कल्याण है ॥८॥ 
*आनन्दरामजी एक महिना सांभर रहे*
ज्ञान गिरा सुनि हर्ष भयो द्विज, 
जो नर - नारि सभी तिन संगा ।
देखि प्रभाव हिं शीश निवावत, 
भाव भयो सबको चित चंगा ।
मास हि एक रहे पुर साँभर, 
ताँ दिन - रैन सभा सत संगा ।
होत विदा तब आयसु मांगत, 
प्रीति भई अब लागि विरंगा ॥९॥ 
श्री दादूजी की ज्ञानमयी वाणी सुनकर द्विज का चित्त हर्षित हो गया । अन्य साथी संगी नर नारी भी उत्तम ज्ञान सुनकर आश्वस्त एवं आल्हादित हो गये । सभी ने शीश झुकाकर प्रणाम किया । स्वामीजी के प्रभाव से सबका मोह भंग हो गया । वे संतों के साथ भावभक्ति में निमग्न रहने लगे । एक मास तक साँभर में रहते हुये ज्ञान कथा सत्संग का आनन्द लेते रहे । फिर विदा होने के लिये स्वामीजी से आज्ञा मांगने लगे और बोले - इतने दिन साथ रहकर आपसे अत्यधिक प्रीति हो गई है, अब बिछुड़ते हुये मन बेरंग(उदास) हो रहा है ॥९॥ 
(क्रमशः)

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