सोमवार, 16 दिसंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(७५/७६)


॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
तुम बिन मेरे को नहीं, हमको राखणहार ।
जे तूं राखै सांइयां, तो कोइ न सकै मार ॥७५॥
टीका ~ हे परमेश्‍वर ! आपके बिना हमारी रक्षा करने वाला दूसरा कोई भी नहीं है । हे नाथ ! जिसकी आप रक्षा करते हो, उसको कोई भी संसार में मारने वाला नहीं है ॥७५॥
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सब जग छाड़ै हाथ तैं, तो तुम जनि छाड़हु राम ।
नहिं कुछ कारज जगत सौं, तुमहीं सेती काम ॥७६॥
टीका ~ हे राम ! चाहे सम्पूर्ण जगत हमारा त्याग कर दे, परन्तु हे स्वामी ! आप हमारा त्याग नहीं करना । जगत से हमारा कोई सम्बन्ध नहीं है और न कोई हमारा जगत से काम ही है । आप ही हमारे स्वामी हो । हम आपके हैं । आपसे ही हमारा काम है । आप ही हमारा कल्याण करोगे ॥७६॥ 
इक नृप यज्ञ बलि देन को, द्विज सुत लियो मोल । 
चार लीक लखि मुरहनि, एक निंबावत मोल ॥
दृष्टान्त ~ एक समय बारिश नहीं हुई । एक राजा ने ज्योतिष वालों से पूछा । वे बोले ~ कि राजन् ! यह आपकी झील है, इसमें एक मनुष्य का बलिदान चढ़ाओ तो बारिश बरसेगी और झील भर जायेगी । राजा ने प्रतिहारों को भेजा कि कहीं से मोल मनुष्य मिले तो उसे ले आओ । वे लोग एक गॉंव में गये । वहॉं मालूम किया तो एक ब्राह्मण बोला, मैं अपना लड़का दे दूंगा । 
उसका लड़का ईश्‍वर भक्त था, बाल्यावस्था से ही । परन्तु ब्राह्मण, उसका पिता, उसके काम से सन्तुष्ट नहीं रहता था । बोलता ~ तूं मर जाये तो अच्छा हो । उसने राजपुरुषों से रुपया ले लिया और उसको बेच दिया । उसको लेकर राजा के पास आ गये । 
राजा उस लड़के को झील पर बलिदान के लिये ले गया । और उस लड़के से पूछा ~ क्या खाएगा, क्या पीएगा ? अब तुझे देवताओं के बलिदान कर रहे हैं । लड़का बोला ~ आज मैंने परमेश्‍वर की प्रार्थना नहीं की है, वह कर लूं । लड़के ने पृथ्वी के ऊपर अंगुली से चार लाइनें खैंची ।
माता पिता सब माया के लोभी, राजा लोभी सागरा । 
देवी देवता बलि के लोभी, तुम सरणागति नागरा ॥
चार लड़के लीक काढी, तीन डाली खोइ । 
एक ऊपर करी करुणा, राख लीजै मोहि ॥
तीन को मिटा दी । एक लाईन को देखकर, परमेश्‍वर से प्रार्थना करने लगा, कि हे नाथ ! इस संसार में इस जीव के चार रक्षक होते हैं, प्रथम माता - पिता, दूसरा राजा, तीसरा देवी - देवता और चौथा परमेश्‍वर । परन्तु लोभ ने इन तीनों की मति मार दी है । हे नाथ ! अब आपकी शरण हूँ, चाहे आप मारो, चाहे तारो । 
जैसे ही बालक ने परमेश्‍वर से प्रार्थना की, इतने में उत्तराखंड की तरफ से एक भारी बादलों की घटा उठी और मूसलाधार वर्षा होने लगी । झील वगैरा सब भर कर पृथ्वी पर जल ही जल हो गया । सब भाग छूटे । पानी के प्रकोप को देखकर राजा के सहित सब घबरा गये और उस बालक को राजा ने नमस्कार करके अपना अपराध क्षमा कराया ।
(क्रमशः)

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