बुधवार, 18 दिसंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(७७/७८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
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*शूरातन*
*दादू जाते जीव तैं तो डरूं, जे जीव मेरा होइ ।*
*जिन यहु जीव उपाइया, सार करेगा सोइ ॥७७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जब तो मैं इस जीव से डरूं, जो जीव मेरा होवै । जीव तो मेरा है नहीं, यह शरीर से जाओ चाहे रहो । जिस परमेश्‍वर ने जीव को उत्पन्न किया है, वही इसकी रक्षा करेगा । हमको क्या चिंता है, इस बात की ॥७७॥
प्रसंग - अकबर बादशाह के बुलावे पर जब दादूदयालजी फतेहपुर सीकरी जाने लगे तब शिष्यों ने अर्ज करीः - 
स्वामीजी ! कुछ भली - सी कहियो । 
पातसाह की रूख में रहियो ॥
नहिं कुछ जंत्र मंत्र का सहारा । 
राजा राम बचावन हारा ॥ 
(इसी प्रसंग में महाराज ने ७६ से ८० तक की साखियॉं कही थी ।)
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*दादू जिन को सांई पाधरा, तिन बंका नांही कोइ ।*
*सब जग रूठा क्या करै, राखणहारा सोइ ॥७८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जिन उत्तम पुरुषों को परमेश्‍वर सोंला सीधा है, उनसे फिर इस संसार में कोई भी बांका कहिए, नाराज नहीं है । और यदि नाराज भी होवे, तो उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते । चाहे सम्पूर्ण जगत उनसे रूठ जाये, परन्तु उन पुरुषों का क्या बिगाड़ कर सकते हैं, जब परमेश्‍वर रक्षा करने वाला तत्पर खड़ा है ॥७८॥
(क्रमशः)

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