बुधवार, 18 दिसंबर 2013

= स. त./१२-४ =

#daduji
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“सप्तम - तरंग” १२-४)*
*दोहा* 
*पहले श्री दादूजी से सुनी दूसरी आनन्दरामजी से*
पहिले हम गुरुमुख सुनी, दूसर विप्र उचार ।
कथा अहमदाबाद की, जानी सब संसार ॥१२॥ 
माधवदास जी लिखते हैं कि - पहिले हमने जो वृतान्त गुरुदेव श्री दादू जी से सुना था, वही सब गुरुदेव के चाचा श्री आनन्दराम जी से प्रत्यक्षदर्शी प्रमाण साक्ष्यों के साथ सभी साधु - संत सज्जनों ने साँभर में जाना । लोधीराम जी आनन्द राम स्नान करने साथ जाते थे, आये हुये सब वापस लौटे ॥१२॥ 
चन्द ॠतू गुण है विधु, अगहन, पून्यूं जान ।
विदा होत नर - नारि तब, पश्चिम कियो प्रयान ॥१३॥ 
विक्रम सम्वत् १६३१ अग्रहायन(मार्गशीर्ष) पूर्णिमा को अहमदाबाद के नर नारी स्वामीजी से आज्ञा लेकर पश्चिम दिशा की ओर प्रस्थान कर गये ॥१३॥ 
*इन्दव*
*बहिन स्रुवा दादूजी के साथ रही*
दादु दयालु सुं भाखि स्रुवा तब, 
साधुन संग सुनी चरचाई ।
मैं नहिं जाउं जु अहमदबाद हिं, 
राम भजों तुम संग रहाई ।
आप कही सुनि होत खुशी अब, 
संग रहो अरु भक्ति बढाई ।
आनंदराम जु होत विदा तब, 
साँभर माँहि स्रुवा गुण गाई ॥१४॥ 
किन्तु श्री दादूजी की चचेरी बहिन ‘स्रुवा’ उनके साथ नहीं गई । वह स्वामीजी से बोली - मैं तो आप सब संतों की सेवा भक्ति करते हुये यहीं सत्संग करना चाहती हूं बड़े सौभाग्य से मिली इस साधु संगति को छोड़कर मैं तो अहमदाबाद नहीं जाना चाहती । आपके समीप रहकर ही राम - भजन करना चाहती हूँ । श्री दादूजी ने कहा - जैसी तुम्हारी इच्छा । हरि भक्ति का संकल्प जानकर बहुत प्रसन्नता हुई । यहीं रहकर सत्संग करो और भक्ति बढाओ । आनन्दराम जी संगी साथियों के साथ विदा हो गये । स्रुवा साँभर में रहते हुये हरिगुण गाने लगी ॥१४॥ 
(क्रमशः)

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