बुधवार, 18 दिसंबर 2013

श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता(स.दि.- २६/३०)


卐 दादूराम~सत्यराम 卐
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*श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता*
रचना ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
सप्तम दिन ~ 
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आं. वृ. -
वैराग्यादिक दिव्य गुण, दैवी गुण कहलाय ।
आसुर गुण के तजे से, हिय मैं स्थिर हो जाय ॥२६॥ 
अब सखि! अगले दिवस में, बतलाऊँगी सोय । 
करने दैनिक काम हैं, समय रहा नहिं कोय ॥२७॥ 
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वां. वृ. - 
मैं जाना चाहूं नांहि, सखी! फिर जाय रही । 
अब तेरा सुनत वियोग, बुद्धि अकुलाय रही । 
पर धीरज मन में धरूँ, काल्ह फिर सत्वर ही । 
मैं आ सुन लूँगी सभी, बात जो शेष रही ॥२८॥ 
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कवि - 
वाह्य वृत्ति फिर प्रणति कर, शिक्षा हिय में धार । 
घर जा कारज में लगी, भल परिणाम विचार ॥२९॥ 
करुणा पूरण हृदय से, सबको सुख ही देत । 
सुषुप्ति में जाकर हुई, सहसा स्वयं अचेत ॥३०॥ 
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इति श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता में सप्तम दिन वार्ता समाप्त: ।
(क्रमशः)

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