卐 दादूराम~सत्यराम 卐
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*श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता*
रचना ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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सप्तम दिन ~
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आं. वृ. -
वैराग्यादिक दिव्य गुण, दैवी गुण कहलाय ।
आसुर गुण के तजे से, हिय मैं स्थिर हो जाय ॥२६॥
अब सखि! अगले दिवस में, बतलाऊँगी सोय ।
करने दैनिक काम हैं, समय रहा नहिं कोय ॥२७॥
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वां. वृ. -
मैं जाना चाहूं नांहि, सखी! फिर जाय रही ।
अब तेरा सुनत वियोग, बुद्धि अकुलाय रही ।
पर धीरज मन में धरूँ, काल्ह फिर सत्वर ही ।
मैं आ सुन लूँगी सभी, बात जो शेष रही ॥२८॥
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कवि -
वाह्य वृत्ति फिर प्रणति कर, शिक्षा हिय में धार ।
घर जा कारज में लगी, भल परिणाम विचार ॥२९॥
करुणा पूरण हृदय से, सबको सुख ही देत ।
सुषुप्ति में जाकर हुई, सहसा स्वयं अचेत ॥३०॥
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इति श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता में सप्तम दिन वार्ता समाप्त: ।
(क्रमशः)
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