शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

= स. त./१७-८ =

*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“सप्तम - तरंग” १७-८)*
*परसरामजी और जगाजी प्रसंग*
भोजन महंत दियो भली हि विधि, 
फेरि इकांत करी चरचाई ।
कौन जगा ! गुरुमंत्र दियो तुम, 
कौन विधी गुरु नाम सुनाई ।
संत कहें - निज राम शिरोमणि, 
मंत्र हु ये ओंकार बढाई ।
या विधि रैन संवाद कियो जन, 
सूर उदै जगराम सिधाई ॥१७॥ 
फिर महन्त जी ने जग्गाजी को पास बैठाकर आदर से भोजन जिमाया । तत्पश्चात् एकान्त में ज्ञान चर्चा की । उन्होंने पूछा - जग्गाजी ! गुरुजी ने आपको कौनसा गुरु मंत्र दिया है ? कौन सी साधना पद्धति बताई है ? तब जग्गाजी ने उत्तर दिया - गुरुदेव श्री दादूजी ने तो हमें राम - नाम को ही शिरोमणि मंत्र बताया है । हम उसे ओंकार के साथ जपते है । निम्बाकाचार्य ने कहा - राम नाम तो शिरोमणि मंत्र है ही, परन्तु संत श्री दादूजी ने अपने भेष पंथ का कोई गुरुमंत्र बताया होगा । तब जग्गाजी ‘सत्यराम’ - कह कर चुप हो गये । इस तरह रात्रि में ज्ञान विचार परक सम्वाद के बाद उन्होंने विश्राम किया । प्रात: होते ही जगरामजी प्रस्थान करके शीध्र ही साँभर पहुंचे ॥१७॥ 
*जगाजी श्री दादूजी से मंत्र पूछना*
स्वामि पे आय जगा शिर नावत, 
भाखत महंत कथा तब सारी ।
मंत्र हू बूझत मो पूरुषोत्तम, 
मैं मुख मंत्र हु राम उचारी ।
पंथ उपासक मंत्र कहा गुरु, 
मैं जु की सतराम उधारी ।
राम जपै जगजीव तिरै सब, 
संत उपासक मंत्र अकारी ॥१८॥ 
स्वामीजी के चरणों में शीश निवाकर निम्बार्काचार्य - महन्त जी की सारी वार्ता बताई, और पूछा - हे गुरुदेव ! आपका पंथ - उपासक गुरुमंत्र क्या है ? उनके पूछे जाने पर मैंने तो राम - नाम को ही मंत्र बताया, किन्तु वे सन्तुष्ट नहीं हुये । हे गुरुजी ! सत्य स्वरूप रामनाम जपने से ही जगत के सब जीव तिरते हैं, फिर संतों का उपासक मंत्र अपनी अपनी पंथ पद्धति के अनुसार भिन्न आकार का होता है क्या ? ॥१८॥ 
(क्रमशः)

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