शनिवार, 21 दिसंबर 2013

= काल का अंग २५ =(१/२)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
‘‘निर्भय बैठा राम जप, कबहूँ काल न खाइ’’ - इस सूत्र के व्याख्यान स्वरूप, अब काल के अंग का निरूपण करते हैं । मन के अनन्त विषय - मनोरथ और संसार - वासनायें ही मानो कालरूप हैं । इसलिये काल के अंग में विषय - मनोरथों का निषेध और प्रभु - भक्ति निष्कामता का उपदेश करते हैं ।
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*मंगलाचरण*
*दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवतः ।*
*वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः ॥१॥*
टीका ~ निरंजन देव गुरुदेव और संतों को, हमारी बारम्बार वन्दना है, जिनकी कृपा से जिज्ञासु आवागमन रूप काल से मुक्त होते हैं ॥१॥
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*काल न सूझै कंध पर, मन चितवै बहु आश ।*
*दादू जीव जाणै नहीं, कठिन काल की पाश ॥२॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अज्ञानी सांसारिक प्राणियों को काल प्राण - पिंड का वियोग करने वाला नहीं दीखता है और वह काल गर्दन पर फरसा मारने को समय देख रहा है और संसारी प्राणी मन में लम्बी - लम्बी वासनाओं का चिन्तन करते रहते हैं । यह अज्ञानी जीव दुःख देने वाले, काल की यम फांसी को भूल रहा है ॥२॥
दिन थोरा आसा घनी, उरझ्या जीव जंजाल । 
रज्जब खैंचा तान में, आइ पहुँचा काल ॥
चौ. - अति कराल सब पर जग जाना । 
अबरु कहूँ सुनिये भगवाना ॥
ऊमरि तरु(गूलर वृक्ष) विसाल तव माया । 
फल ब्रह्मांड अनेक निकाया ॥
जीव चराचर जन्तु समाना । 
भीतर बसहिं न जानहिं आना ॥
ते फलभक्षक कठिन कराला । 
तव भय डरत सदा सोउ काला ॥ 
मानस(अरण्य कांड)

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