शनिवार, 21 दिसंबर 2013

= स. त./१९-२० =

*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“सप्तम - तरंग” १९-२०)*
*अविचल मंत्र का बताना*
अवचिल मंत्र उचार कियो गुरु, 
तां जपि सिद्ध रहै नहिं छाने ।
पंथ उपासक मंत्र दियो गुरु, 
सेवक संत सुनै सब काने ।
मंत्र सुन्यो रमिजाइ जगा तब, 
आ पुरुषोत्तम पास बखाने ।
अवचिल मंत्र उचारि जगा तब, 
संत प्रशंसत शंक न माने ॥१९॥ 
तब स्वामी श्री दादू जी ने(अविचल मंत्र ......) उच्चारण करके बताया । जिसको जपने से साधु सहज ही सिद्ध हो जाता है, उसका तप तेज और यश गुप्त नहीं रह पाता, सर्वत्र प्रकट हो जाता है । इस पंथ - उपासक मंत्र को सुनकर सभी साधु संतों ने स्रदय बुद्धि में धारण किया । इस तरह गुरु मंत्र पाकर जग्गाजी शीध्र ही रम गये और निम्बार्काचार्य जी के पास जाकर(अविचल मंत्र ........) का व्याख्यान किया । उसे सुनकर संत ने बहुत प्रशंसा की, और बोले - अब कोई शंका नहीं, श्री दादूजी की पंथ उपासना अति उत्तम है ॥१९॥ 
*परसराम जी के शिष्य बाल नारायणजी*
महंत सुने मस्तान भये कहि, धन्य जगा, धनि हैं गुरु दादू ।
वासर रैन संवाद किये रमि, पास बुलाय प्रशंसहिं साधू ।
देखिहुं संत दयालुहिं जाकर, कौन दिशा तप तेज अगादू ।
बाल नारायण साँभर आयहु, संतन को तब होत संवाद ॥२०॥ 
विशेष - सम्पूर्ण(अविचल मंत्र) में चौबीस ईश्वरीय गुणों, प्रकृति, तत्वो, दिव्य शक्तियों, तथा समस्त ॠद्धि सिद्धि विभूतियों(९+८+७ = २४) का समावेश है । इसको विचारपूर्वक धारण करने तथा जाप स्पन्दन से शरीर के त्रिगुणात्मक अष्ट योग चक्रों का सहज विकास होकर दिव्य ऊर्जा का ऊर्ध्वमुखी रेतस् प्रवाहित होता है । साधक ऊध्वरिता सिद्ध बन जाता है । 
*अविचल मंत्रों से सिद्धि प्राप्तजी २९ माला डेली* ~
*ऊँ दादू अविचल, अमर, अक्षय,*
*अभय, राम, निजसार ।*
*सजीवन, सवीरज, सुन्दर,*
*शिरोमणि, निर्मल निराकार ।*
*अलख, अकल, अगाध,*
*अपार, अनन्त मंत्र राया ।*
*नूर, तेज, ज्योति, प्रकाश,*
*परम मंत्र पाया ।*
*उपदेश दीक्षा, दादू गुरु राया ॥*
निम्बाकाचार्य जी ‘अविचल मंत्र’ का व्याख्यान सुनकर प्रसन्नता से गद्गद हो गये । और बोले - जग्गाजी आप धन्य हैं, जिन्हें श्री दादूजी जैसे गुरु मिले । संत जग्गाजी से पूरे दिन और रात को भी ज्ञान सम्वाद करते रहे । उन्हें पास बैठाकर साधुओं के बीच प्रशंसा की । और कहा - साधु सज्जनों ! श्री दादूजी का तप तेज अगाध है, उनकी दिशा को कोई नहीं पा सकता । उन दयालु संत का दर्शन करना चाहिये । तब उन साधुओं में से सर्वप्रथम बाल नारायण साँभर आये । स्वामीजी के दर्शन करके ज्ञान सम्वाद किया ॥२०॥
(क्रमशः)

1 टिप्पणी:

  1. अविचल मंत्र मे हर शब्द के साथ मंत्र का प्रयोग किया जाता है।

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