मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

= काल का अंग २५ =(७/८)


॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
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*दादू यहु घट काचा जल भरा, विनशत नाहीं बार ।* 
*यहु घट फूटा जल गया, समझत नहीं गँवार ॥७॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! यह शरीर कुम्हार के कच्चे घड़े के समान है और श्वास रूपी इसमें जल भरा है । परन्तु कच्चे घड़े में जल भरें, तो इसके टूटने में कुछ विलम्ब नहीं लगता । ऐसे ही इस शरीर के नष्ट हो जाने पर श्वास रूपी जल बिखर जाता है । इस बात को ‘गँवार’ कहिये, पामर विषयी नहीं समझते हैं ॥७॥ 
*फूटी काया जाजरी, नव ठाहर काणी ।* 
*तामें दादू क्यों रहै, जीव सरीषा पाणी ॥८॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! यह शरीर नौ जगह से खंडित है, अर्थात् नौ द्वार वाला है और फिर विषयों में आसक्ति से जर्जर हो रहा है । ऐसे शरीर में अन्तर्मुख - वृत्ति का क्षय होता है राम नाम के स्मरण के बिना, इसमें जल जैसा द्रवित जीव कैसे रह सकेगा, इसका विनाश अवश्यम्भावी है ॥८॥ 
कबीर यहु तन काचा कुम्भ था, लिये फिरै था साथ । 
ठफका लाग्या फूटगा, कछु न आया हाथ ॥ 
अहुंठ कोड़ इक इक उभै, इते माग मधि एक । 
‘रज्जब’ जीव जल क्यों रहै, काया कुंभ ये छेक ॥ 
(रज्जबजी महाराज कह रहे हैं कि अहुंठ = साढ़े तीन कोड़ = करोड़ रोम कूप छोटे मार्ग और उनके उभै यानी दुगुने = सात और एक के दुगने = दो अर्थात् कुल नौ बड़े छेक = छेद; जिस काया घड़े में होंगे, उसमें जीव रूपी जल कैसे रहेगा ?)
(क्रमशः)

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