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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*निष्कामी पतिव्रता का अंग ८/४१*
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*सारा दिल सांई सौं राखे, दादू सोइ सयान ।*
*जे दिल बंटे आपना, सौ सब मूढ़ अयान ॥४१॥*
दृष्टांत -
सुलतानी गो बलख तज, रह्यो इकंत हि जाय ।
सुत तिये गये दीदार को, नैन मूंद बिन चाय ॥९॥
सुलतान - अदम के पुत्र इब्राहिम बलख के बादशाह थे । फूलों की शय्या पर सोया करते थे । एक दिन शय्या तैयार करने वाली दासी शय्या को सुख अनुभव करने को उस पर सो गई और सोत ही उसे निद्रा आ गई । बादशाह ने उसे सोते देखकर चाबुक से मारा ।
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तब वह पहेल तो खूब हँसी और पीछे रोने लगी । बादशाह ने हँसने और रोने का कारण पू़छा । उसने कहा - हँसी तो इसलिये कि इस शय्या पर सोने के सुख के आगे यह मार क्या चीज है ? रोई इसलिये कि मैं थोड़ी सी सोई हूँ उसका फल इतनी मार पड़ी है किन्तु आप प्रतिदिन सोते हैं आपको कितनी मार पड़ेगी । आपके भावी दुःख को समझकर मुझे रोना आ गया ।
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यह सुनकर सुलतान ने फूलों की शय्या पर सोना छोड़ दिया । एक दिन शिकार को गये तो आवाज आई - तुमको शिकार के लिये उत्पन्न नहीं किया है । उस दिन से शिकार छोड़ दी । एक दिन महल की छत पर सो रहे थे कि दो ईश्वर दूत वहाँ उतर कर बातें करने लगे । सुलतान ने पू़छा - तुम यहाँ कैसे आये हो और क्या खोज रहे हो ? उन्होंने कहा - हमारा ऊंट खो गया है, उसे खोज रहे हैं । सुलतान ने कहा - छत पर ऊंट कैसे मिलेगा ? दूतों ने कहा - छत पर ऊंट नहीं मिलता तो राज्य वैभव में ईश्वर भी नहीं मिलेगा ।
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तब सुलतान राज्य छोड़कर वन को चले गये । एक समय सुलतान का पुत्रदि परिवार दर्शन करने को गया तो सुलतान ने नेत्र बन्द कर लिये उन लोगों की ओर देखा तक भी नहीं कारण वे अचाह हो गये थे । सुलतान के समान ही अपना मन प्रभु में ही लगाया रक्खे, इधर उधर नहीं जाने दे, वही संत श्रेष्ठ होता है ।
(क्रमशः)
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