बुधवार, 25 दिसंबर 2013

= काल का अंग २५ =(९/१०)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
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*बाव भरी इस खाल का, झूठा गर्व गुमान ।*
*दादू विनशै देखतां, तिसका क्या अभिमान ॥९॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! श्वास भरी हुई इस शऱीर रूप खाल का क्या अभिमान करते हो ? जो इसका गर्व और गुमान करते हैं अर्थात् शारीरिक बल, काले गोरे का गुमान, ये तो सब मिथ्या हैं । ये तो देखते - देखते ही नाश होते जा रहे हैं । इनका क्या अभिमान करना है ॥९॥
पेट बंध भया बादशाह, बाव सरै, देऊं राज । 
फक्कड़ छुडाया तीन बर, राज लेहु क्या काज ॥
दृष्टान्त ~ एक बादशाह का पेट बन्द हो गया अर्थात् अपान वायु बन्द हो गई । तब पेट फूल कर ढोल हो गया, अफारा नहीं उतरा । बादशाह घबराकर बोला ~ कि जो कोई मेरा अफारा उतार दे, तो उसको सम्पूर्ण राज दे दूँ । इतने में एक फक्कड़ साधु आ पहुँचा । 
साधु बोला ~ क्या बात है बादशाह ? बादशाह ने वृत्तान्त सुना दिया । फक्कड़ के हाथ में डंडा था । तानकर बादशाह के पेट पर एक डंडा मारा, तो बादशाह की अपान वायु निकली, ‘‘धौं धौं‘ । दूसरा डंडा मारा । फिर बोली ~ ‘‘धौं ।’’ तीसरा डंडा फिर मारा । फिर बोली ~ ‘‘धौं ।’’ बादशाह का पेट पतला हो गया और आराम आ गया । बादशाह बोला ~ यह सारा राज आपके नजर है, आपने मेरी जान बचा दी । फक्कड़ बोले ~ चल, इस तेरे राज का क्या करें ? यह तो तीन पाद की कीमत का है ।
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*दादू हम तो मूये मांहि हैं, जीवण का रू भरम ।*
*झूठे का क्या गर्वबा, पाया मुझे मरम ॥१०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! हम तो कहिये अज्ञानी सांसारिक प्राणी, राम - विमुखी मरे हुओं की गणना में ही हैं । जीने का तो केवल हमको भ्रम ही हो रहा है । अरे ! इस मिथ्या शरीर को पाकर क्या गर्व करता है ? यह तो नश्वर है । किन्तु जो नित्य, अनित्य का विचार करके आत्मा का निश्चय करते हैं, उनके अन्तःकरण में अविद्या की भ्रान्ति नहीं रहती है । क्योंकि वे मिथ्या नाम रूप का अहंकार नहीं करते हैं ॥१०॥
(क्रमशः)

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