*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“सप्तम - तरंग” २७-९)*
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देश विदेश भई उपमा जिन,
आदित रूप उजागर भारी ।
दीन दयालु कहे सब साधुन,
संत सुनो सब बात हमारी ।
देश विदेश रमो सब साधक,
दे उपदेश हिं नाम उचारी ।
यों सुनि होत विदा कितने जन,
केतिन पास रहे तप धारी ॥२७॥
देश विदेश में भी दादूजी की शोभा आदित्य के समान उजागर हो रही थी । एक दिन स्वामीजी ने अपने शिष्य साधुओं से कहा - अब आप साधु संत इच्छानुसार रमते हुये ज्ञानोपदेश का प्रचार करो । यों सुनकर कुछ साधु रम गये, कुछ वहीं स्वामीजी के पास ही रहकर तप भजन करते रहे ॥२७॥
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*परसरामजी सांभरपूरा एक दिन रहे*
परशुराम पुर साँभर आये ।
दादू के तहँदर्शन पाये ।
वन्दन करत मिले जन दोऊ ।
बैठे आसन सतसंग होऊ ॥२८॥
चर्चा ज्ञान विचार करा ही ।
वर्ष उछाह सुचित्त भरा ही ।
वासर एक कियो सतसंगा ।
साँझ सुथान गये मनचंगा ॥२९॥
एक दिन निम्बार्काचार्य परशुराम जी भी साँभर पधारे । दोनों संत प्रेम से परस्पर मिले, ज्ञान चर्चा सत्संग किया । एक दिन ठहर कर परशुराम जी अपने धाम लौट गये ॥२८/२९॥
(क्रमशः)

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