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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*निष्कामी पतिव्रता का अंग ८/४५*
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*दादू मनसा वाच कर्मना, हिरदै हरि का बाव ।*
*अलख पुरुष आगे खड़ा ताके त्रिभुवनराव ॥४५॥*
दृष्टांत-
ग्राम मीर खुशरा रहै, बाहर और फकीर ।
ताका परिचय ना भया, मेह बरसाया मीर ॥११॥
जिस ग्राम में औलिया निजामुद्दीन के शिष्य मीर खुशरा रहते थे उसे ग्राम के बाहर एक अपने को बहुत बड़ा मानने वाले फकीर भी रहते थे । एक वर्ष वर्षा की कमी से उस ग्राम के लोग ग्राम के बाहर रहने वाले फकीर के पास जाकर प्रार्थना की - आप समर्थ हैं, वर्षा बरसाने की कृपा अवश्य करें किन्तु वे वर्षा नहीं बरसा सके ।
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वे लोग लौटकर मीर खुशरा की कुटिया पर आये और कहा- वर्षा नहीं होने से ग्राम दुःखी हो रहा है । मीर खुशरा गायक तो थे ही । उन्होंने अपनी वीणा उठाकर मेघ मलार राग गाते हुये प्रभु से प्रार्थना की तब शीघ्र ही बादल होकर वर्षा बरसने लगी थी । सोई उक्त ४५ की साखी में कहा- निष्काम पतिव्रत पूर्वक परिपूर्ण प्रेम से मन वचन कर्म से हरि की भक्ति करता है, उसके आगे अलख पुरुष त्रिभुवन के राजा खड़े रहते हैं ।
(क्रमशः)
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