गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

= काल का अंग २५ =(११/१२)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
यहु वन हरिया देखकर, फूल्यो फिरै गँवार ।
दादू यहु मन मृगला, काल अहेड़ी लार ॥११॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अज्ञानी सांसारिक मनुष्यों का मन रूपी मृग, संसार वन की हरियाली स्त्री आदि विषय - कामना रूप सुन्दरता को देख कर अर्थात् उसमें आसक्त होकर वृथा ही जीवन गमाता है । किन्तु संग में लगे हुए काल रूपी शिकारी को नहीं देखता है ॥११॥
सब ही दीसैं काल मुख, आपा गह कर दीन्ह ।
विनशै घट आकार का, दादू जे कुछ कीन्ह ॥१२॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! राम - विमुखी संसारीजन, आपा, अनात्म अहंकार के वशीभूत होकर अविवेक से ही काल के मुंह में पड़ रहे हैं । क्योंकि पाप - पुण्य रूपी बन्धन पैदा करके आप ही जन्म - मृत्यु को प्राप्त होते हैं ॥१२॥
तीन लोक चौदह भुवन, काल सबनि को खाय । 
ज्यूं मर्कट गूलर गिल्यो, माछर कहॉं रहाय ॥
(क्रमशः)

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