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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*निष्कामी पतिव्रता का अंग ८/५२*
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*दादू नारी पुरुष को, जानैं जे वश होइ ।*
*पिव की सेवा ना करे, कामणाकारी सोइ ॥५२॥*
दृष्टांत- हुरम जु गई फकीर पै, मो कों जंतर देहु ।
होय पातस्या मोर वश, साखी लिख दिई लेहु ॥१३॥
एक बादशाह की पत्नि एक फकीर के पास गई और प्रार्थना की - आप मुझे ऐसा यंत्र बना दें जिससे बादशाह मेरे वश में हो जाय । फकीर ने सोचा - मैं नट जाऊंगा तो यह और किसी दंभी के पास जायगी और वह इसे बहकायेगा । अतः इसके धर्म के अनुकूल ही इसे शिक्षा और तावीज देना ही अच्छा रहेगा ।
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फिर उन्होंने -
टांमण टूमण हे सखी, भूल करो मत कोय ।
पीव कहै त्यों कीजिये, आपे ही वश होय ॥१४॥
उक्त दोहा लिखकर ताबीज में रखकर उसे दिया और कहा - इस ताबीज का प्रभाव तब पड़ेगा जब तुम बादशाह की इच्छा के अनुसार अति प्रेम से नित्य सेवा करोगी । वहा मान गई और सर्व प्रकार से सेवा करने लगी तब सेवा से बादशाह उसके अधीन हो गये और उसी के महल में ही रहने लगे ।
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एक दिन बादशाह ने कहा - अब मैं तुम्हारे वश में हो गया हूं । स्त्री ने कहा - ऐसे वश में थोड़े ही हुये हो फकीर साहब ने यंत्र दिया था, उससे वश में हुये हो । फिर बादशाह भी उक्त फकीर के पास गया और कहा - मुझे भी वशीकरण यंत्र बना दो । फकीर ने कहा - हम तो नहीं जानते । बादशाह - स्त्रियों को तो बना देते हो और मुझे कहते हो कि जानते हो नहीं । फकीर - किस स्त्री को बना दिया है । वह लाओ । बादशाह उस ताबीज को लेकर गया । फकीर ने कहा - इसे खोलकर देखो । खोलकर देखा तो उक्त दोहा मिला । फकीर ने कहा - यह यंत्र है क्या ? इसमें तो नारी को धर्म की शिक्षा दी है । यह उक्त ५२ की साखी में कहा है, उक्त प्रकार ईश्वर की सेवा से ईश्वर भी अनुकूल होते हैं ।
(क्रमशः)

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