॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
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*सींगी नाद न बाजहि, कत गये सो जोगी ।*
*दादू रहते मढी में, करते रस भोगी ॥२१॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अज्ञानी संसारीजन, इस शऱीर रूप मढी में रहते हैं । और वे जीव प्रातःकाल प्रभु का स्मरण भूल कर अपने परिवार से प्रेम करते थे । परन्तु अन्त समय में कोई भी जन्म - मरण के दुःख को नहीं बँटा सकते । ऐसे संसारीजन अनेक भोग - वासनाओं में फंसकर, नित्य - अनित्य का विचार किये बिना, जन्म - मरण में ही भ्रमते हैं ॥२१॥
कबीर जंत्र न बाजहि, टूट गये सब तार ।
जंत्र बिचारा क्या करे, चले बजावनहार ॥
गुरु दादू आमेर थे, ढिग जोगी को थान ।
इक दिन सींगी ना बजी, मर गयो जोगी जान ॥
प्रसंग ~ आमेर में ब्रह्मऋषि दादूदयाल जी महाराज विराजते थे । उनके समीप ही, कनफटे योगियों का ही एक स्थान था । उसमें वे लोग अनेक प्रकार के भोग भोगते थे और खूब मस्ती से रहते । सुबह - शाम सींगी नाद जोर - जोर से बजाते । एक रोज प्रातःकाल सींगी नाद की आवाज नहीं हुई । परम गुरुदेव बोले ~ संतों ! वह आज काल - भगवान के भोजन बन गये, अर्थात् उनको आज काल ने खत्म कर दिया ।
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*दादू जियरा जायगा, यहु तन माटी होइ ।*
*जे उपज्या सो विनश है, अमर नहीं कलि कोइ ॥२२॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! इस शरीर से चिदाभास अन्तःकरण जाएगा और यह शरीर मिट्टी में मिलेगा । इसी प्रकार जो कुछ उत्पन्न हुआ है नाम रूप जगत, उसमें कोई भी अमर रहने वाला नहीं है । अमर तो केवल परमेश्वर और परमेश्वर का नाम ही है ॥२२॥
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः ध्रुवं जन्म मृतस्य च ॥ - गीता
कबीर जो उग्या सो आंथवै, फूल्यो सो कुम्हलाय ।
जो चुणिया सो ढह परे, जो जाया सो जाइ ॥
(क्रमशः)
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