गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

दादू पतिव्रता के एक है ८/५५

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*निष्कामी पतिव्रता का अंग ८/५५*
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*दादू पतिव्रता के एक है, व्यभिचारिणि के दोइ ।*
*पतिव्रता व्यभिचारिणी, मेला क्यों कर होइ ॥५५॥*
दृष्टांत - 
सुया अनुसूया बहिन दो, इक काशी अन्य ग्राम ।
घर राख्या रवि रथ थका, पतिव्रत के बल राम ॥१७॥
सूया और अनसूया दो बहिनें थी । सूया काशी में रहती थी और अनुसूया अत्रि ॠषि की पत्नी अत्रि आश्रम में रहती थी ।
घर रख्या - एक अन्य ग्राम में आग लगी थी । उस ग्राम की एक बहिन ने सूया से प्रार्थना की - मेरे घर को बचावें । तब सूया ने काशी में रहते हुये ही जल की धार उसके घर के लगा दी थी, उससे उसके घर की रक्षा हो गई थी । आग ने उसका घर नहीं जलाया था । 
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दूसरी कथा - रवि रथ थका(रुका) एक समय चोरों ने राजमहल में चोरी की और धन लेकर भागे । उनके पीछे राजपुरुष लग गये । चोरों को पता लग गया कि हमारे पीछे राजपुरुष आ रहे हैं । अतः छिपने के लिए मांडव्य आश्रम पर गये द्वार पर मांडव्य ऊर्ध्व बाहु किये तपस्या कर रहे थे ।
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चोरों ने राजा की रत्नमाला उनके गले में डाल दी और धन भी इधर - उधर फैंक के आश्रम में छिप गये । राजपुरुषों ने उनको पकड़ लिया और राजा ने सबको सूली देने की आज्ञा दी । रत्नमाला गले में मिलने से मांडव्य भी चोरों के साथ पकड़े गये थे । सूली ने सबके प्राण ले लिये किन्तु मांडव्य जीवित रहे । 
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रात्रि को सूया अपने कोढ़ी पति को टोकरा में बैठाकर शिर पर रखे मार्ग से जा रही थी । उसके पैर की चोट मांडव्य के लगी । इससे मांडव्य ने शाप दिया कि जिसके पैर की चोट मेरे लगी है वह सूर्योदय होते ही मर जायगा । सूया ने रवी रथ को रोक दिया और कहा - सूर्योदय होगा ही नहीं । जह सूर्य नहीं उगा तब हाहाकार मच गया । 
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सब देवतादि अनसूया के पास गये । तब अनसूया ने सूया से कहा - सूर्योदय होने दो तुम्हारा पति मरेगा तब मैं उसे जिवित कर दूंगी । फिर सूर्योदय होते ही सूया का पति मर गया और अनसूया ने उसे जिवित कर दिया । सोइ उक्त ५५ की साखी में कहा है - पतिव्रता में जैसे उक्त प्रकार बल होता है, वैसे भगवान् के अनन्य भक्तों में निष्काम पतिव्रता से महान बल आ जाता है ।
(क्रमशः)

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