रविवार, 22 दिसंबर 2013

परपुरुषा सब पर हरै ८/३८

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*निष्कामी पतिव्रता का अंग ८/३८*
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*परपुरुषा सब पर हरै, सुन्दरि देखे जाग ।*
*अपना पीव पिछानकर, दादू रहिये लाग ॥३८॥*
दृष्टांत- शर्याती नृप की सुता, दिई च्यवन को व्याह ।
ते त्रय हो जलसे चले, पु़छे पति गई पाय ॥७॥
एक समय च्यवन ॠषि तप में स्थित थे । उन पर रेता चढ़ रहा था किन्तु आँखे चमक रही थीं । राजा शर्याती यात्रा करते हुये उनके वन में सेना सहित ठहरा था । राजा की सुकन्या नामक पुत्री सखियों के साथ च्यवन के पास पहुँच गई और जुगनू की भांति चमकती हुई आँखों में कांटे चुभो दिये । 
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उनसे जब रक्त की धारा निकली तब कन्या तो डरकर भाग गई किन्तु राजा की सेना आदि सबके मल-मूत्र बन्द हो गये । फिर राजा उक्त पाप के कारण सुकन्या को च्यवन ॠषि के ही समर्पण कर दिया । 
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फिर च्यवन ने अश्विनी कुमारों को कहा - तुम मुझे युवावस्था दो तो मैं तुम्हे यज्ञ भाग दिला दूंगा । अश्विनी कुमारों ने एक कुण्ड में बूटियों का रस डालकर च्यवन को कहा - इसमें कूदें फिर अश्विनी कुमार भी कूद गये । फिर उस कुण्ड से तीन युवा पुरुष एक जैसे निकले । सुकन्या पर धर्म संकट आ गया । कारण ? तीनों एक से थे । 
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फिर सुकन्या ने सूर्य से प्रार्थना की - भगवन् ! मेरे पति एक और हो जायें ऐसी कृपा करें तब च्यवन एक ओर हो गये । अश्विनीकुमार अलग खड़े हो गये । सुकन्या ने जैसे अपने पति को पहचाना था, वैसै ही साधन करके संत अन्य सबको त्याग कर परमात्मा में ही अनुरक्त होते हैं ।
(क्रमशः)

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