रविवार, 22 दिसंबर 2013

श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता(अ.दि.- ९/१०)


卐 दादूराम~सत्यराम 卐
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*श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता*
रचना ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
अष्टम दिन ~ 
सखी ! एक नारी अस आवे, 
तिहिं विपरीत कोउ नहिं जावे । 
समझ गई लक्ष्मी वह प्यारी, 
नहिं, कोमलता अति सुखकारी ॥९॥ 
आं वृ. - ‘‘एक ऐसी स्त्री आती है कि उससे विपरीत कोई भी नहीं होता। बता वह कौन है?” 
वां वृ. - ‘‘वह तो लक्ष्मी है। लक्ष्मी सभी को प्यारी होती है। उसके विपरीत कोई भी नहीं जाता।” 
आं वृ. - ‘‘नहिं, सखि ! वह तो कोमलता है। कोमलता जिसमें होती है, उसके सभी अनुकूल रहते हैं। तू भी निरंतर अपने हृदय में कोमलता को स्थान देना। कोमलता से मनुष्य सर्व प्रिय हो जाता है।” 
अरी एक नारी अस आवे, 
सादर बोले मुझको भावे । 
अति गरीबनि कोई नारी, 
नहीं नम्रता है यह प्यारी ॥१०॥ 
आं वृ. - ‘‘एक ऐसी स्त्री आती है जो बड़े आदर से बात करती हैं और मुझे भी अच्छी लगती है। बता वह कौन है ?” 
वां वृ. - ‘‘कोई गरीब स्त्री होगी।” 
आं वृ. - ‘‘नहिं, सखि ! यह तो नम्रता है। जिसमें अभिमान नहीं होता वह सबसे सादर सस्नेह बोलता है तथा सबको ही प्रिय लगता है। तू सबसे सादर सस्नेह बात करेगी तो सर्व प्रिय बन जायेगी, यह सर्वथा सत्य है।” 
(क्रमशः)

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