रविवार, 15 दिसंबर 2013

दादू - सब बातन की एक है ७/२४

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*लै का अंग ७/२४*
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दादू - सब बातन की एक है, दुनियां से दिल दूर ।
सांई सेती संग कर, सहज सुरति लै पूर ॥२४॥
दृष्टांत - 
साधु रखा नृप बाग में, बतकां चुग गई हार ।
खर चढ़ कर हेला दिया, इन से मिल हो ख्बार ॥४॥
एक संत विचरते हुये एक राजा की राजधानी मैं आये और कुछ दिन वहां के लोगों को सत्संग का लाभ प्रदान किया । एक दिन राजा भी सत्संग में आया और अति प्रभावित होकर संतजी से प्रार्थना की - आप बाग में विराजें वहां आपको अधिक सुविधा होगी । राजा के अधिक आग्रह से संत बाग में पधार गये । वहां राजा, राज परिवार तथा सभी सत्संगी सत्संग का लाभ प्राप्त करने लगे ।
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एक दिन राजकुमार अपने साथियों के साथ स्नान करने बाग में आया था । वे लोग अपने वस्त्र - भूषण उतार कर रख दिये और जल के कुण्ड में प्रवेश करके जल - क्रीड़ा करने लगे । पीछे से वहां रहने वाली बतकों ने राजकुमार के हार के मोतियों को खाने योग्य वस्तु समझ कर चुग गई ।
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जब राजकुमार आदि स्नान करके वस्त्र - भूषण पहनने लगे तो राजकुमार का हार नहीं मिला । और व्यक्ति तो वहां था ही नहीं संत ही थे । अतः राजकुमार को भ्रम हो गया कि संत ने ही हार लिया है । राजकुमार ने संतजी से कहा - मेरा हार नहीं मिला आपने लिया हो तो दो । संत - न हमने लिया है और न हमें हार का पता ही है ।
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राजकुमार ने राजा को कहा । राजा ने आज्ञा दे दी - संत का काला मुख और पैर नीले बनाओ और गधे पर बैठाकर नगर के बाजारों में घूमाकर नगर से निकाल दो । संतजी के किसी भक्त ने राज पुरुषों से पहेल ही उक्त बात संतजी को सुनादी । तब संत ने स्वयं काला मुख और नीले पैर बना लिये तथा एक गधे पर बैठकर नगर में जाकर बोलने लगे । इस दुनियां से जो प्रेम करेगा उस का मेरे समान ही काला मुख होगा । 
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उधर बतकों के हार नहीं पच सका । इस से बतकों ने हार उगल दिया । हार मिलने और संत का काला मुख आदि दोनों के समाचार राजा को एक साथ ही मिले । तब राजा अति लज्जित होकर संत के पास आये और संत को बाग में ले जाकर क्षमा याचना की । संत ने कहा - तुम्हारा तो कोई दोष ही नहीं है, तुम को क्या क्षमा करें । यह तो हमारा ही प्रमाद है जो हमने प्रभु का भजन छोड़कर तुम लोगों से प्रेम किया । उसी का दंड हमने प्राप्त किया है । यही उक्त २४ की साखी में कहा - संसार से मन हाटकर प्रभु में ही लगाओ ।
(क्रमशः)

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