रविवार, 15 दिसंबर 2013

श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता(स.दि.- १९/२०)


卐 दादूराम~सत्यराम 卐
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*श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता*
रचना ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
सप्तम दिन ~ 
वृद्ध लोग इक ऐसा गावे, 
पूर्व जन्म तन सोउ बतावे । 
पक्षी यह आदम सन्यासा, 
नहिं, सिद्ध यह कृत अभ्यासा ॥१९॥ 
आं. वृ. - ‘‘वृद्ध लोग एक ऐसा सुनाते हैं जो प्राणियों के जन्म के शरीर को प्रत्यक्ष दिखाता है। बता वह कौन है?” 
वां. वृ. - ‘‘वह आदम-सन्यास पक्षी है। उसकी पंख ऐनक के समान नेषों के लगा कर मनुष्य को देखने से उसके पूर्व जन्म का शरीर दिखता है। यदि पूर्व जन्म में बैल था तो बैल ही दीखता है, मनुष्य नहीं दीखता। ऐसा मैंने भी सुना है।” 
आं. वृ. - ‘‘नहिं, सखि! यह तो योगाभ्यास किया हुआ योगी है। योग शक्ति से बता देता है कि पूर्व जन्म में अमुक था। तू भी यदि योगाभ्यास करे तो तेरे में भी विचित्र-विचित्र शक्तियां आ सकती हैं।” 
सखी ! एक पट् के सँग लागा, 
तबसे दीन फिरत है भागा । 
वे पट् होंगे द्यूत खिलारी, 
नहीं, जीव मन इन्द्रिय प्यारी ॥२०॥ 
आं. वृ. - ‘‘एक जबसे छ: के संग लगा है तब से दीन दु:खी होकर भागा फिरता है। बता वह कौन है?” 
वां. वृ. - ‘‘तुम्हारा कोई सम्बन्धी होगा और छ: जुवारियों के साथ लग जाने से धन नष्ट करके अब दु:खी होकर अन्न-वस्त्र के लिये इधर-उधर दौड़ता होगा।” 
आं. वृ. - ‘‘नहिं, सखि ! यह तो जीवात्मा है। मन और इन्द्रियों के साथ होकर अनात्म पदार्थों के लिये दौड़ रहा है। जो जीव इनके साथ लगता है उसकी दौड़ धूप कभी नहीं मिटती। तू इनके साथ न लग कर इनको अपने अधीन करना; तभी सुखी हो सकेगी। इसमें लेशमाष भी मिथ्या नहीं है।” 
(क्रमशः)

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