गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

दादू एक बोल भूले हरि ५/३१

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*जरणा का अंग ५/३१*
*दादू एक बोल भूले हरि, सु कोई न जाने प्राण ।*
*अवगुण मन आणे नहीं, अरु सब जाणे हरि जाण ॥३१॥*
दृष्टांत- 
मूसे साहिब से कहा, अन्त पर्णव्रत लेउं ।
मुइ त्रिया सँग देख के, कहा इसे नहिं देउं ।
यहूदियों के धर्मगुरु मूसा साहब ईश्वर के भक्त थे, उन्होंने एक दिन ईश्वर को कहा - भगवन् ! आप को विश्व को अन्न पूर्ण करने में कष्ट होता हैं । अतः अन्न पूर्ण करने का काम मुझे दे दें । उसे मै कर दिया करुंगा । ईश्वर - यह कार्य तुम से नहीं हो सकता । मूसा - आप एक दिन देकर परीक्षा कर लें । मुझ से नहीं हो तो आप पीछा ले लेना । 
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विशेष आग्रह करने से ईश्वर ने एक दिन सब को अन्न देने का काम मूसा साहब को दे दिया, उस दिन मूसा ने सब को अन्न दिया किन्तु एक मनुष्य मरी हुई स्त्री से संग कर रहा था । उसे देखकर मूसा अति रुष्ट हुये और उसे अन्न नहीं दिया, ईश्वर ने पू़छा - सबको दिया । मूसा ने कहा - एक मनुष्य मृतक स्त्री से संग कर रहा था, उस महा पापी को नहीं दिया और सब को दिया है । ईश्वर ने कहा - मैं अवगुण नहीं देखता । पाप करने वाला पाप का फल भोगेगा । मै अन्न तो सब को ही देता हूँ । ऐसा कहकर मूसा से पीछा ले लिया । सोई साखी में कहा है । अवगुण मन आणे नहीं । ईश्वर अवगुण देखना तो भूल गये है । इस रहस्य को कोई भी साधारण प्राणी नहीं जानते ।
इति श्री जरणा का अंग ५ समाप्तः
(क्रमशः)

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