शनिवार, 7 दिसंबर 2013

बे खुद खबर होशियार बाशद ४/३१२

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*परिचय का अंग ४/३१२*
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बे खुद खबर होशियार बाशद, खुद खबर पामाल ।
बे कीमत मस्तानः गलतान, नूर प्याले ख्याल ॥३१२॥
प्रसंग कथा -
या साखी सुन औलिया, चल आया आमेर ।
कथा करत गुरु देख के, मुड़ चालत लियो फेर ॥२६॥
एक औलिया(पहुंचे हुये फकीर) ने दादूजी की उक्त ३१२ की साखी किसी से सुनी और अर्थ समझकर अति प्रभावित हुये और जिससे सुनी थी उससे पू़छा - यह पद्य किन का है ? उसने कहा - संत प्रवर दादूजी का है । औलिया - वे कहां रहते हैं ? उसने कहा - आजकल राजस्थान के आमेर नगर में रहते हैं ।
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यह सुन कर औलिया ने निश्चय किया कि दादूजी का दर्शन अवश्य ही करना चाहिये । वे किसी अन्य प्रान्त के थे किन्तु अपने निश्चय के अनुसार आमेर में आकर दादू आश्रम में गये तब दादूजी भक्तों को उपदेश कर रहे थे । दादूजी को उपदेश करते देख कर औलिया उदास हो गये और पीछे ही लौट चले ।
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दादूजी उनके आने का कारण अपनी योग शक्ति से जान गये थे । इससे एक शिष्य को भेज कर उनको पीछा बुलाया । शिष्य ने जाकर कहा - आपको दादूजी बुला रहे हैं । औलिया - क्या करेंगे जाकर जैसा हम समझकर आये थे वह बात तो इन में नहीं है । शिष्य ने कहा - फिर भी आप चलिये इसमें आप की क्या हानि है ? आप के लौटने पर हो सकता है, जो आप समझकर आये थे वह बात भी मिल जाय । अति आग्रह करने पर औलिया लौट आये और दादूजी के पास बैठ गये ।
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दादूजी ने कहा - मेरी साखी सुनकर आप इतनी दूर से आये और मुझे उपदेश करते देखकर क्यों लौट गये ? वह साखी भी तो उच्च स्थिति को बताना रूप उपदेश ही है । बिना बताये उस स्थिति का भी साधक को कैसे ज्ञान हो सकता है ? अतः अधिकारी को उपदेश देने से उस स्थिति की कु़छ भी हानि नहीं होती है ।
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यह सुनकर औलिया ने पू़छा - आपको यह कैसे पता लगा कि मैं आपकी साखी सुनकर दूर से आपके दर्शन करन आया हूँ ? दादूजी ने कहा - यह तो भगवत् कृपा है । ब्रह्मचिन्तन के प्रताप से दूर श्रवण, दूर दर्शन, दिव्य ज्ञानादि बिना इच्छा ही अपने आप ही हो जाते हैं । यह उच्च कोटि के साधन कि महिमा प्रकट ही है । यह सुनकर औलिया की पुनः श्रद्धा बढ़ी फिर वह कु़छ दिन सत्संग का लाभ प्राप्त करके अपने देश लौट गया ।
(क्रमशः)

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