मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता(स.दि.- २१/२५)


卐 दादूराम~सत्यराम 卐
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*श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता*
रचना ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
सप्तम दिन ~ 
वां. वृ. -
अरी सखी ! मन इन्द्रियें, मुझसे जय हों नांहि ।
तूने क्या साधन किये, बैठ धाम के मांहि ॥२१॥ 
रोला - 
सो मुझको बतलाय, करूँ मैं वही सयानी । 
जिससे इन्द्रिय और, चित्त तज के नादानी ॥ 
लगे राम के मांहि, एक हो राम सहारा । 
सखी ! सहज हो जाय, सफल उपदेश तुम्हारा ॥२२॥ 
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आं. वृ. - 
धाम हमारा एक, फिरी तू देश अनेका ।
मैं स्थिर होकर जपत, रही हरि नामहि एका ॥ 
इससे कुपथ न जात, बुद्धि मन इन्द्रिय मेरे । 
तू दैवी गुण साथ, नाम जप वश हों तेरे ॥२३॥ 
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वां. वृ. -
अरी सहेली क्या कहूं, घर धंधों के हेत । 
जहां तहां फिरती रही, मुझको रहा न चेत ॥२४॥ 
रोला - 
दैवी गुण हैं कौन, बता अब सत्वर मुझको । 
तब शरणागत हुई, करूँ मैं प्रणाम तुझको ॥ 
जिस विधि वे रह पायँ, हृदय में निश्छल होकर । 
सो उपाय बतलाय, सखी अब शीघ्र कृपा कर ॥२५॥ 
(क्रमशः)

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