卐 दादूराम~सत्यराम 卐
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*श्री वाह्यांतर वृत्ति वार्ता*
रचना ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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सप्तम दिन ~
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वां. वृ. -
अरी सखी ! मन इन्द्रियें, मुझसे जय हों नांहि ।
तूने क्या साधन किये, बैठ धाम के मांहि ॥२१॥
रोला -
सो मुझको बतलाय, करूँ मैं वही सयानी ।
जिससे इन्द्रिय और, चित्त तज के नादानी ॥
लगे राम के मांहि, एक हो राम सहारा ।
सखी ! सहज हो जाय, सफल उपदेश तुम्हारा ॥२२॥
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आं. वृ. -
धाम हमारा एक, फिरी तू देश अनेका ।
मैं स्थिर होकर जपत, रही हरि नामहि एका ॥
इससे कुपथ न जात, बुद्धि मन इन्द्रिय मेरे ।
तू दैवी गुण साथ, नाम जप वश हों तेरे ॥२३॥
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वां. वृ. -
अरी सहेली क्या कहूं, घर धंधों के हेत ।
जहां तहां फिरती रही, मुझको रहा न चेत ॥२४॥
रोला -
दैवी गुण हैं कौन, बता अब सत्वर मुझको ।
तब शरणागत हुई, करूँ मैं प्रणाम तुझको ॥
जिस विधि वे रह पायँ, हृदय में निश्छल होकर ।
सो उपाय बतलाय, सखी अब शीघ्र कृपा कर ॥२५॥
(क्रमशः)
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