卐 सत्यराम सा 卐
तन भी तेरा, मन भी तेरा, तेरा पिंड पराण ।
सब कुछ तेरा, तूँ है मेरा, यहु दादू का ज्ञान ॥२०॥
टीका ~ हे परमेश्वर ! यह तन आपका दिया हुआ, आपकी आराधना द्वारा, आपके ही अर्पण करते हैं और मन भी आपके अर्पण है । यह प्राण और स्थूल शरीर, यह सब आपका दिया हुआ, निष्काम कर्मों द्वारा, आपके ही अर्पण करते हैं । स्थूल, सूक्ष्म सौंज सब आपके अर्पण है और आप हमारे हो । यही आपके अनन्य भक्तों का ज्ञान है ॥२०॥
(श्री दादूवाणी ~ सुंदरी का अंग)
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साभार : Kripa Shankar B ~
जब आपकी साधना के सर्वश्रेष्ठ प्रयास विफल हो जाते हैं, आपको निरंतर असफलताएँ ही असफलताएँ मिलती है, जीवन में निराश और हताश हो गए हैं, चारों और निराशा का अन्धकार और दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो तो किसी को दोष देने की अपेक्षा अपनी समस्त आपदाएं सद्गुरु और परमात्मा को सौंप दें ।
यही सम्पूर्ण समर्पण है । जो परमात्मा समस्याओं के रूप में आया है वही समाधान के रूप में भी आयेगा । ह्रदय में उसे प्रतिष्ठित कर लो । दुःख-सुख सब उसे सौंप दो । निरंतर अपना कर्म यानि प्रयास करते रहो । कर्ता भी उसी को बनाओ और भोक्ता भी ।
आपके माध्यम से दुखी भी वही है और सुखी भी वही है, यानि परमात्मा ही पञ्च महाभूतों में फँसकर आप के रूप में दुखी है । आप उस से दूर हो गए यही सब दुखों का एकमात्र कारण है । ॐ तत्सत् ।
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