卐 सत्यराम सा 卐
कछू न कीजे कामना, सगुण निर्गुण होहि ।
पलट जीव तैं ब्रह्म गति, सब मिलि मानैं मोहि ॥
घट अजरावर ह्वै रहै, बन्धन नांही कोइ ।
मुक्ता चौरासी मिटै, दादू संशय सोइ ॥
राम रसिक वांछै नहीं, परम पदारथ चार ।
अठसिधि नव निधि का करै, राता सिरजनहार ॥
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