बुधवार, 18 दिसंबर 2013

= ११० =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
Our lives are defined by the struggle between what we choose to be, And what we must be.
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करुणा 
तुम को भावै और कुछ, हम कुछ किया और । 
मिहर करो तो छूटिये, नहीं तो नांहीं ठौर ॥७८॥ 
टीका ~ हे परमेश्वर ! आपको तो सरलता, निश्छलता, निष्कपटता, प्रेमभाव, प्रेमाभक्ति इत्यादिक सद्गुणयुक्त भक्त प्रिय लगते हैं और हमने तो हे दयालु ! इनके विपरीत ही काम किए हैं । आप हमारे ऊपर दया करोगे, तभी हमारा जन्म - मरण आदि दुःखों से छुटकारा होगा, नहीं तो हमको कहीं भी ठिकाना नहीं हैं ॥७८॥ 
मुझ भावै सो मैं किया, तुझ भावै सो नांहि । 
दादू गुनहगार है, मैं देख्या मन मांहि ॥७९॥ 
टीका ~ हे दयालु ! जो हमारे मन को व्यावहारिक काम प्रिय लगे, वह ही हमारे मन ने काम किये हैं । आपको प्रिय लगने वाले कोई भी काम हमने नहीं किये, इसीलिये हम आपके गुनहगार अपराधी हैं । मैंने मन में भली प्रकार से विचार कर देख लिया है कि हम आपके दरबार के सदैव अपराधी बंदे हैं ॥७९॥ 
(श्री दादू वाणी ~ विनती का अंग)

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