बुधवार, 1 जनवरी 2014

= काल का अंग २५ =(२३/२४)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
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*दादू देही देखतां, सब किसही की जाइ ।*
*जब लग श्वास शरीर में, गोविन्द के गुण गाइ ॥२३॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! यह स्थूल शरीर देखते - देखते सभी के जा रहे है अर्थात नष्ट हो रहे हैं । इसलिये साधक पुरुषों को चाहिये कि जब तक शरीर में श्वास स्थित है, तब तक गोविन्द का स्मरण करना चाहिये । इसी में भला है ॥२३॥
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*दादू देही पाहुणी, हंस बटाऊ मांहि ।*
*का जाणूं कब चालसी, मोहि भरोसा नांहि ॥२४॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! यह मनुष्य देह तो अति प्रिय मेहमान की भॉंति मिला है और हंस जीव रूप प्राण, इसमें यात्री की भांति है । जैसे यात्री कभी भी उठ करके चल पड़ता है, वैसे ही यह प्राणरूप जीव, कभी भी इसका त्याग करके जा सकता है ? तत्ववेताओं को इसका विश्वास नहीं है ॥२४॥
(क्रमशः)

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