#daduji
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“अष्टम - तरंग” ५-६)*
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*(“अष्टम - तरंग” ५-६)*
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*आमेर - नरेश दर्शन प्रसंग*
भूप सुने जब स्वामि पधारत,
भृत्य अमात्य लिये संग आये ।
पाद प्रणम्य सु - भेट चढावत,
दर्शन पाय अती हरषाये ।
ज्ञान कथा सुनि भक्ति जगी हिय,
संतहु सेवन की चित लाये ।
द्रव्य छुवे न, बँटाय गरीबन,
आयसु पाय सभी घर आये ॥५॥
संत महात्मा की शोभा सुनकर आमेर - नरेश भी अमात्य भृत्यों सहित दर्शनार्थ संतधाम पर आया । चरणों में प्रणाम करके भेंट चढाई, दर्शनों से हर्षित होते हुये ज्ञान कथा सुनी । जिससे हृदय में भक्ति भावना जगी, चित्त में संत सेवा की लालसा उत्पन्न हुई । स्वामीजी ने द्रव्य सम्पत्ति को छुवा तक नहीं, सब कुछ गरीबों में वितरित करवा दिया । पश्चात् आज्ञा पाकर राजा अपने दल सहित महल को लौट गया ॥५॥
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दोहा - वस्तु विविध मेवा, वसन भेजे भूपति राज ।
तृण - कुटिया छायी तहाँ, स्वामी सेवा - साज ॥६॥
दोहा - वस्तु विविध मेवा, वसन भेजे भूपति राज ।
तृण - कुटिया छायी तहाँ, स्वामी सेवा - साज ॥६॥
राजा ने संतो की सेवा में आवश्यकता की विविध वस्तुयें, मेवा मिष्ठान्न वस्त्र आदि भिजवाये, सेवकों द्वारा तृण कुटिया बनवायी । प्रतिदिन संतों के उपयोगी सामग्रियाँ भिजवाता रहता ॥६॥
(क्रमशः)
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