रविवार, 12 जनवरी 2014

= काल का अंग २५ =(४५/४६)


॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
*संगी सज्जन आपणां, साथी सिरजनहार ।* 
*दादू दूजा को नहीं, इहि कलि इहि संसार ॥४५॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अपना सभी जीवों का साथी और सज्जन, सबको उत्पन्न करने वाला परमेश्वर ही है इस संसार में । वही अन्तकाल के दुःख से बचाते हैं । उन्हीं का स्मरण करो ॥४५॥ 
*काल चितावणी* 
*ये दिन बीते चल गये, वे दिन आये धाइ ।* 
*राम नाम बिन जीव को, काल गरासै जाइ ॥४६॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! ये जवानी के दिन समाप्त होते चले जा रहे हैं और वे बुढ़ापा के अथवा अन्तकाल के दिन दौड़कर नजदीक आ गये हैं । राम - नाम का स्मरण करे बिना इस प्रकार सभी जीवों को काल भक्षण करता जा रहा है ॥४६॥ 
ब्रजन्ति न निवर्तन्ते स्रोतांसि सरितां यथा । 
आयुरादाय मर्त्यानां तथा राज्यहनी सदा ॥ 
(नदी का बहता जल वापस नहीं लौटता, वैसे ही आयु के बीते रात दिन नहीं लौटते, क्योंकि काल उन्हें खा जाता है ।) 
एक एक कर सब चले, ज्यूं तरवर के पात । 
जगजीवन जीव जगत के, सो किनहूँ न जाने जात ॥
(क्रमशः) 

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