रविवार, 12 जनवरी 2014

= अ. त./२७-२९ =



*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ 
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~ 
*(“अष्टम - तरंग” २७-२९ )* 
यंत्र कपाट खुले सब के सबहिं, 
कायथ बेगि चले अनुरागी। 
छाड़ि चितोर हि ध्यान धर्यो मन, 
आवत अम्बपुरी मति जागी। 
दतरि छाप हु शिष्य भयो तब, 
स्वामि समीप रहे बड़भागी। 
साधन धाम मरोठ चिते भलि, 
दादूराम रट्यो मन लागी ॥२७॥ 
कारागार सभी किंवाड़, खुल गये, कायस्थ मोहन ने चित्तौड़ से ध्यान हटाकर अम्बापुरी आने की सोची तथा मोहन कायस्थ ने गुरु चरणों में पहुँचकर प्रणाम किया। स्वामीजी ने शिष्य बना लिया। कुछ दिन गुरुजी की सेवा में रहने के बाद इन्होंने अपना साधना धाम मारोठ ग्राम में स्थापित किया। दादूराम रटते हुये दफ्तरी छाप से प्रसिद्ध हुये ॥२७॥ 
मोहन दास मेवाड़ तजे घर, 
आय अमेर भये निजदासा । 
शिष्य भये हठ साधि यमादिक, 
आसन प्राणायाम उपासा । 
प्रत्याहार धारणा ध्यान हु, 
लेय समाधि धरे सुख रासा । 
यों करि मोहन योग क्रिया कर, 
भानगढि ग्राम हिं लेत निवासा ॥२८॥ 
मोहनदास जी मेवाड़ देश के रहने वाले थे । घर में रहते हुये भी हरिभक्ति में लीन रहते थे । एक दिन श्री दादूजी का नाम सुनकर मन में दर्शन उत्कंठा जागी । घर छोड़कर आमेर आ पहुँचे । श्रद्धाभक्ति पूर्वक सद्गुरु के शिष्य बन गये । इन्होंने यम नियम प्राणायाम साधना से हठयोग द्वारा सिद्धि प्राप्त की । अष्टांग योग(यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, समाधि) की क्रियाओं को साधते हुये ये ग्राम भावगढी में विराजे । मोहन मेवाड़ा के नाम से प्रसिद्ध हुये, संतो और भक्तों को योग प्रक्रिया भी बहुत जरूरी है ॥२८॥ 
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*मोहनदास भजनीक प्रसंग* 
मोहन गौड़ भये भजनीक हु, 
शीश धरयो कर तापस ताही ॥ 
आयसु पाय रमे दिशि पश्चिम, 
संत सदा हिं ‘असोप’ रहाही ॥ 
दादु गुरु निज इष्ट उपासत, 
राम रमे उर संत सहा ही ॥ 
यों करि मोहन वेद भये शिष, 
दादु दयालु हिं भक्ति कराही ॥२९॥ 
गौड़ वंशी मोहनदास भजनीक बहुत प्रसिद्ध थे । हरिलीला के भक्ति करुणा के भजन बहुत प्रेम से गाया करते । ये भी श्री दादूजी के शिष्य बनकर भजन करने लगे । राजस्थान के पश्चिम में आसोप ग्राम में विराजकर इष्ट उपासना की । रामनाम से इनका उर अन्तर सुन्दर हो गया था । इस तरह मोहन राम के चार शिष्य श्री दादूजी की भक्ति करते हुये प्रसिद्ध हुये । दादूराम मंत्र का जप संगीत में भी खूब करते बजाते तो श्री दादूराम का लेहरा बजाते ॥२९॥
(क्रमशः)

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