रविवार, 19 जनवरी 2014

= काल का अंग २५ =(५९/६०)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
दादू काल हमारा कर गहै, दिन दिन खैंचत जाइ ।
अजहुं जीव जागै नहीं, सोवत गई बिहाइ ॥५९॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! काल - भगवान हमारा कहिये, सम्पूर्ण प्राणियों की, आयु रूपी हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच रहा है । किन्तु फिर भी अज्ञानी बहिर्मुख जीव, मोह रूप निद्रा से नहीं जागता है और सारी आयु राम - भजन के बिना निष्फल ही गँवा रहा है ॥५९॥
आसन्नतरतामेति मृत्युर्जन्तो दिने दिने । 
आघातं नीयमानस्य वध्यस्येव पदे पदे ॥
(बलि के बकरे की भांति, दिन प्रतिदिन प्राणियों को मृत्यु खैंच कर ले जा रही है ।)
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सूता आवै सूता जाइ, सूता खेले सूता खाइ ।
सूता लेवै सूता देवै, दादू सूता जाइ ॥६०॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सांसारिक अज्ञानीजन, अज्ञान अथवा मोह रूप निद्रा में ही तो आते हैं और इसी प्रकार जाते हैं । और अज्ञान में ही खेलते हैं । अज्ञान में ही अपने को भोक्ता जानकर सब भोग भोगते हैं । और अचेत अवस्था में ही लेते - देते हैं । अचेत अवस्था में ही चले जाते हैं ॥६०॥
(क्रमशः)

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