*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
.
*(“नवम - तरंग” १-२)*
.
*इन्दव - छन्द*
*राजा भगवतदास ने शीश नवाया प्रसंग किया*
मास गये इक अम्बपुरी गत,
सीकरि तें तब आय महीशा ।
दोय गये दिन भूपति आवत,
दे परिदक्षिण नावत शीशा ।
पूछत भूपति पूरब गाथक,
साँभर माँहि यथा जगदीशा ।
भूप मनोरथ जान कही गुरु,
बूझहु टीलहिं संत मुनीशा ॥१॥
स्वामी श्री दादूजी को आमेर में विराजते हुये एक मास बीत गया । तब आमेर - नरेश सीकरी शहर से लौट कर आया । दो दिन पश्चात् संतधाम में आकर स्वामीजी की प्रदक्षिणा की और शीश नवाया । आमेर - नरेश भगवतदास ने सत्संग कथा के बाद स्वामीजी की साँभर लीला चमत्कारों के विषय में विस्तार से वृतान्त जानना चाहा । तब राजा की श्रद्धायुक्त इच्छा को जानकर स्वामीजी ने शिष्य टीला की ओर संकेत करके कहा कि - पूर्वकालिक गाथा इनसे पूछ लीजिये ॥१॥
.
*छप्पय*
*राजा भगवतदास जी को टीलाजी ने श्रीदादू की लीला सुनाई*
नगर साँभर संत लीला,
विविध विध आपहु करे ।
छींत लिखि सिकदार द्रोही,
उलटि अक्षर सब फिरे ।
गिरे काजी हाथ दोऊ,
नारि सुत वित घर जरे ।
देत कर गजराज के शिर,
दोउ रूप गुरु किम धरे ॥२॥
राजा ने टीलाजी से पूछा - आप मुझे स्वामीजी की लीलाओं तथा चमत्कारों का वृतान्त विस्तार से बताइये, कि - स्वामीजी ने सिकदार के लिखित - आदेश के अक्षर किस तरह पलट दिये ? काजी के हाथ क्यों कर स्तब्ध हुये ? दूसरे काजी का घरबार परिवार कैसे जला ? मत्त गजराज को शिर पर हाथ धरकर कैसे शान्त किया ? तथा स्वामीजी ने अपने दो रूप कैसे धर लिये ॥२॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें