॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
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*समर्थ का शरणा तजै, गहै आन की औट ।*
*दादू बलवंत काल की, क्यों कर बंचै चोट ॥६७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरण को छोड़कर अन्य देवी - देवता आदिकों की ओट ग्रहण करे तो काल की चोट से कैसे रहित हो सकते हैं ? अर्थात् नहीं हो सकते ॥६७॥
सुन्दर तो तूं उबरि है, समर्थ शरणै जाइ ।
और जहॉं तहॉं तूं फिरै, काल तहॉं तहॉं खाइ ॥
खोज पकड़ विश्वास गहि, धणी मिलेगा आइ ।
अजा गज मस्तक चढ़ि, निर्भय कोंपल खाइ ॥
दृष्टान्त ~ एक जंगल में, एक रोज रेवड़ से बिछुड़ कर एक बकरी रात को रह गई । उसने सोचा, अब जान कैसे बचेगी ? जंगल में उसने सभी पशुओं के खोज देखे । जब शेर का खोज मिला, उसका सहारा लेकर बैठ गई । जंगल के जानवर निकलने लगे, खाना - पीना करने को । बकरी को देखकर गीदड़ मुंह बाह कर आने लगा । तब बकरी बोली ~ पहले यहॉं आकर देख ले, यह किसका खोज है ? गीदड़ बोला ~ शेर का । तो कहा ~ उसकी बैठाई हुई हूँ, वह मुझे बैठाकर गया है ।
गीदड़ डर गया । बोला ~ बहन ! बैठी रह, हम तेरे को कुछ नहीं कहते । इस प्रकार प्रायः सभी जंगल के जानवर देख - देख कर चले गये । जब शेर गर्जना करता हुआ आया, बकरी बोली ~ मेरी पहले प्रार्थना सुन लो । अब तक तो मैंने आपके खोज का सहारा लेकर अपनी जान बचाई है । अब हे भाई ! आप मुनासिब समझौ, वैसा करो । शेर बोला ~ ठीक है, अब तुझे किसी का भी खतरा नहीं है ।
शेर ने हाथी को बुलाया और बोला कि यह मेरी बहन है, इसको तुम अपने ऊपर चढ़ाओ और खूब कच्ची - कच्ची वृक्षों की पत्तियां खिलाओ । उसी प्रकार हाथी करने लगा । बकरी हाथी के मस्तक पर चढ़ कर, सबसे निर्भय होकर, वृक्षों की पत्तियां खाती है, और मग्न रहती है । इसी प्रकार परमेश्वर के नाम रूपी खोज का सहारा लेकर अनन्य भक्त नाम का स्मरण करते हैं । उन्हीं को परमेश्वर, काल - कर्म के भय से मुक्त कर देते हैं ।
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*सजीव*
*अविनाशी के आसरे, अजरावर की ओट ।*
*दादू शरणैं सांच के, कदे न लागै चोट ॥६८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! अविनाशी अजर अमर परमेश्वर का जिसने आसरा ले लिया है, उस सत्य स्वरूप के सत्य नाम का जो स्मरण करते हैं, उनके फिर कभी भी काल - कर्म की चोट नहीं लगती है ॥६८॥
(क्रमशः)
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