रविवार, 5 जनवरी 2014

= अ. त./१३-१४ =


#daduji
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“अष्टम - तरंग” १३-१४)*
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सांगानेर तपैं जन रज्जब, 
अम्बपुरी नित ही चलि आवे ।
श्रीमुख जप उचार सुनैं नित, 
साँझ समै अपने पुर जावे ।
सर्वंग बाणि रची गुण कव्वित, 
धीरज ध्यान धरें गुण गावे ।
यों कर नित्य हिं दर्शन पावत, 
दादु दयालु हिं शिष्य कहावे ॥१३॥
गुरु आज्ञा पाकर रज्जबजी सांगानेर में ही साधना करने लगे । गुरु दर्शनार्थ नित्य अम्बापुरी आते, श्रीमुख से उपदेश सुनकर सांय पुन: सांगानेर लौट जाते । रज्जबजी ने साधना परिपक्व होने पर वाणी रचना की, सर्वंगीसार रचा । छन्द कवित मय इनकी वाणी में दृष्टान्तमय अद्भुत उपदेश उजागर हुये । श्री दादूजी के शिष्यों में रज्जबजी, धीरज ध्यान गुणों में सर्वाग्रणी प्रसिद्ध हुये ॥१३॥
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*शिष्य मोहन दरियाई प्रसंग - १*
मनोहर - छन्द
देवगढ ग्राम मध्य, मोहन पँवार कुल,
देशहु मेवाड़ तजि नौकरी विचारी है ।
सूरत में कियो वास, इच्छाराम सेठ पास,
तां के घर बोहित को विविध व्योपारी है ।
नवका में माल भरे, दूसर पठाये पुर,
आत जात रहे खेप माल साहूकारी है ।
दोय शत बैठे नर, मोहन मुनीम कर,
हीरा रु जुहार लाल, रतन अपारी है ॥१४॥ 
देवगढ ग्राम के पवांर वंशी मोहन, अपना मेवाड़ देश छोड़कर, नौकरी के प्रयोजन से सूरत के सेठ इच्छाराम के पास रहते थे । उस सेठ का जहाज व्यापार में चलता था । जहाज में माल भरकर आते जाते रहते थे । एक बार दो सौ जनों के साथ मुनीम मोहन, रत्न जवाहरात लेकर व्यापार के लिये जहाज से यात्रा कर रहे थे ॥१४॥
(क्रमशः)

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