रविवार, 12 जनवरी 2014

जहँ जहँ.दादू मन के १०/११५.१९

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*मन का अंग १०/११५.१९*
.
*जहँ जहँ आदर पाइये, तहाँ तहाँ मन जाय ।*
*बिन आदर दीजे राम रस, छाड़ हलाहल खाय ॥११५॥*
दृष्टांत - 
गुरु दादू की कथा में, आवत इक रजपूत ।
वह ले आया पावणा, सो उठ गया कपूत ॥२८॥
आमेर में दादूजी का प्रवचन श्रवण करने को एक क्षत्रिय सज्जन आते थे । एक दिन उनके कोई सम्बन्धी सज्जन आ गये । सत्संग का समय होने पर उन्होंने अपने सम्बन्धी सज्जन को कहा - मैं तो अब संतों का प्रवचन श्रवण करने जा रहा हूँ । यह नौकर आपके पास है जो भी आवश्यकता हो सो इसे कह देना । उसने कहा मैं भी चलता हूँ । फिर दोनों साथ - साथ गये । 
आज कु़छ देर हो जाने से सत्संग का स्थान श्रोताओं से पूर्ण भर चुका था । प्रतिदिन जाने वाले सज्जन सत्संग की मर्यादा को जानते थे अतः जहाँ जगह मिली वहाँ ही बैठ कर श्रवण करने लगे । उनके सम्बन्धी का किसी ने आदर सत्कार नहीं किया । इससे वह थोड़े खड़े रहकर वहाँ से चल दिया । बाजार में एक वेश्या ने उन्हें जाते देखकर कहा - आइये आइये । 
तब उसके पास चले गये और विषय रूप विष को प्राप्त होकर प्रसन्न हुये । वही उक्त ११५ की साखी में कहा है - प्राणी बिना आदर राम भक्ति रूप रस को भी छोड़कर आदर करने से विषय रूप विष भी प्राप्त करके प्रसन्न होता है ।
.
*दादू मन के शीश मुख, हस्त पाँव है जीव ।*
*श्रवण नेत्र रसना रटे, दादू पाया पीव ॥११९॥*
छप्पय - मन गयंद बलवंत, तासु के अंग दिखाऊं ।
काम क्रोध अरु लोभ, मोह चहुँ चरण सुनाऊ ।
मद मच्छर है शीश, सुंडि तृष्णा सु डुलावे ।
द्वन्द दशन हैं प्रकट, कल्पना कान हलावे ॥
पुनि दुविधा दृग देखत सदा, पूंछ, प्रकृति पीछे फिरे ।
कह सुन्दर अंकुश ज्ञान के, पीलवान गुरु वश करे ।
.
इति श्री मन का अंग १० समाप्तः
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें