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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मन का अंग १०/१०१*
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*देखा देखी सब चले, पार न पहुंचा जाइ ।*
*दादू आसन पहल के, फिर फिर बैठे आइ ॥१०९॥*
दृष्टांत -
दो ऐदी को देख के, पड़े बहुत उत आय ।
करी परीक्षा बादशाह, बाड़ अग्नि दिये धाय ॥२४॥
एक बादशाह मार्ग से जा रहे थे । दो वृक्षों के नीचे दो ऐदी(परम आलसी) पड़े थे उनको देखकर उनमें से एक को कहा - तुम धूप में क्यों पड़े हो ? और कौन हो ? उठ कर छाया में तो आ पड़ो । तब दूसरे ने कहा - उससे बात मत करो, वह तो परम आलसी है । मेरे पैर पकड़ कर घसीटते हुए मुझे छाया में कर दो ।
बादशाह - तुम स्वयं उठकर क्यों नहीं जाते हो ? ऐदी - मैं तो मरा हुआ हूं । बादशाह - बोलते कैसे हो ? ऐदी - तुरत ही मरा हुआ हूं । फिर बादशाह ने जो नहीं बोलता था उसके एक चाबुक मारा तब बोलने वाले ने कहा - एक और मारो । मेरे मुख पर कुत्ता मूत रहा था किन्तु इसने उसे भी नहीं हटाया था ।
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फिर बादशाह ने विचार किया कि वे दोनों ही महात्मा ज्ञात होते हैं । बोलने वाला भी उच्च कोटि का है और न बोलने वाला तो अत्यन्त ही उच्च कोटि का है । इनकी सेवा का प्रबन्ध अवश्य करना चाहिये । उन दोनों को एक स्थान में रखकर उनकी सेवा का प्रबन्ध कर दिया, और भी कोई ऐसे हों तो उनकी सेवा करने की भी घोषणा कर दी । उक्त घोषणा सुनकर बहुत से ऐदी बन बनकर वहाँ आ पड़े ।
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उनका खर्च अधिक बढ़ता देख कर मंत्री ने बादशाह को कहा - आपकी ऐदियों की सेवा करने की घोषणा सुनकर बहुत ऐदी एकत्र हो गये हैं । अतः उनकी परीक्षा करना परम आवश्यक है । बादशाह ने कहा - परीक्षा कर लो । फिर मंत्री ने ऐदियां के एक खाली छप्पर में आग लगवा दी और द्वार से किसी को भी नहीं निकलने दिया ।
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तब नकली ऐदी कांटों की बाड़ को कूद - कूद कर भाग गये । केवल वे दो ही रह गये । मंत्री ने उनकी रक्षा की । सोई उक्त १०९ की साखी में कहा है कि उक्त ऐदियों के समान देखा देखी करने वाले संसार से पार परब्रह्म को प्राप्त नहीं कर सकते । वे तो उक्त नकली ऐदियों के समान पीछे ही अपनी स्थिति में आ जाते है । अतः देखा देखी करने का परिणाम सुन्दर नहीं होता ।
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द्वितीय दृष्टांत -
इक नृप माला फेरि तै, हासिल लेवत नांहि ।
नृप दुख औषधि कालजा, मांगत सब उठ जांहिं ॥२५॥
एक राजा ने एक भक्त किसान की आर्थिक स्थिति कमजोर देखकर उसे हासिल माफ कर दिया था । तब उसकी देखा देखी और किसान भी माला फेरने लगे और राजा से हासिल माफ करा लिया । अब तो बहुत किसान वैसा करने लगे । तब मंत्री ने सोचा - ऐसे तो राज्य कोश में अर्थ संकट आ जायेगा । राजा से कहा - माला फेरने वालों की परीक्षा लेनी चाहिये । राजा ने कहा - ठीक है ।
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फिर मंत्री ने माला फेरने वालों को सब को बुलाकर एक भवन में रक्खा और एक - एक से कहा - राजा के भयंकर रोग हो गया है । उसको मिटाने के लिये माला फेरने वाले भक्त का कलेजा जाहिये । तब सब नट गये, हम तो भक्त नहीं हैं किन्तु जिसका प्रथम हासिल तो माफ रखा और सबसे जितने वर्षो का नहीं दिया था वह भी लिया और आगे भी लेना आरम्भ कर दिया । सोई उक्त १०९ की साखी में कहा है -
देखा देखी करने वाले अपने कथन को पूरा नहीं कर सकते । अतः देखा देखी न करके हो सके वही करना चाहिये ।
(क्रमशः)
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