॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
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*सब जीव बिसाहैं काल को, कर कर कोटि उपाइ ।*
*साहिब को समझैं नहीं, यों परलै ह्वै जाइ ॥३७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! संसार के सम्पूर्ण बहिरंग मनुष्य, करोड़ों उपाय करके काल को प्राप्त होने के ही साधनों को खरीदते हैं और वह साहिब परमात्मा जो सत्य स्वरूप है, उसको सत्संग के द्वारा जानते ही नहीं । अर्थात् इसी प्रकार संसार के प्राणी प्रलय होते जाते हैं ॥३७॥
कृषि, बिणजी, जुद्ध कर, वैद्यक, ज्योतिष जोइ ।
जगजीवन अति कष्ट करि, अंतक जुवती जोइ ॥
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*दादू कारण काल के, सकल संवारैं आप ।*
*मीच बिसाहैं मरण को, दादू शोक संताप ॥३८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! संसारीजन काल को प्राप्त होने के लिये, अपने आपको नाना प्रकार की विषय - वासना और पाप - कर्मों द्वारा संवारते हैं, अर्थात् सजाते हैं । और अपनी मृत्यु के लिये स्त्री रूप ‘मीच’ कहिए, काल को ग्रहण कर रहे हैं । यह तो मानो काल - भगवान का उनको एक निमंत्रण ही दिया है । ऐसे अज्ञानी जीव, शोक और सन्ताप से सदैव तप्त रहते हैं ॥३८॥
पढ तो कोकिला बरजतॉं, मुहम्मद को जमात ।
ऊँट बेच घोड़ो लियो, मींच लई पछतात ॥
दृष्टान्त ~ मोहम्मद का जमाई कोकिला शास्त्र पढ़ा हुआ था । उसने ऊँट को बेचकर घोड़ा खरीद लिया । जानता था कि घोड़े की लात से मेरी मृत्यु होगी । पर फिर भी काल ने उसकी मति मार दी । पीछे से घोड़े की लीद उठा रहा था, घोड़े ने एक लात मारी मुंह पर और जान निकल गई । - ‘मीच बिसाहै मरण को’
(क्रमशः)
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