*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“अष्टम - तरंग” १९-२०)*
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*हरिगीतिका छन्द*
*श्री दादूजी के दर्शन पाकर भाव विभोर मगन*
स्वामि बूझत कौन हो तुम,
कौन दिश घर देश ही ।
कहे मोहन शिष्य तेरो,
देहु गुरु उपदेश ही ।
स्वामि पूछत शिष्य कैसे ?
कहाँ पुर तव धाम ही ।
कहाँ कब उपदेश लीन्हा,
सुन्यो कित मम नाम ही ॥१९॥
स्वामीजी ने पूछा - भाई ! तुम कौन हो ? किस देश दिशा से आये हो, तुम्हारा घर कहाँ है ? मोहन ने उत्तर दिया - हे गुरुदेव ! मैं आपका शिष्य हूं, मुझे उपदेश दीजिये । तब स्वामीजी ने पुन: पूछा - अरे भाई ! मेरे शिष्य किस तरह हो ? तुम्हारा नगर व धाम कहाँ है ? मैंने कब उपदेश देकर शिष्य बनाया ? तुमने मेरा नाम कहाँ और किससे सुना ॥१९॥
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कहत मोहन सुनो स्वामी,
समुद्र अपनो धाम ही ।
तहाँ सिद्ध हु तीन परसत,
ताहिं को परणाम ही ।
मोहि डूबत खैंचि लीन्हो,
दियो फल अरु नीर ही ।
नींद सोवत पठे तब इत,
हरी जन की पीर ही ॥२०॥
मोहन ने निवेदन किया - हे स्वामीजी ! मेरा धाम तो समुद्र ही समझिये नौका दुर्घटना के बाद डूबते हुये मुझे तीन सिद्ध महात्माओं ने बचाया, फल और जल देकर प्राण बचाये, और नींद में सोते हुये मुझे यहाँ पहुँचा दिया, मेरा सारा संताप दूर कर दिया ॥२०॥
(क्रमशः)
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