#daduji
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“अष्टम - तरंग” ९-१०)*
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साधु कही अपने अनुमान हिं,
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“अष्टम - तरंग” ९-१०)*
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साधु कही अपने अनुमान हिं,
तीन करोड़ हिं को परमाना ।
जो लगि मात ! रहे धर अम्बर,
जो लगि मात ! रहे धर अम्बर,
तों लगि जीव तिरैं हि जहाना ।
जीव अनन्त तिरैं भव सागर,
जीव अनन्त तिरैं भव सागर,
निर्गुण पंथहु पाज बधाना ।
जैमल के शिर हाथ धरयो सब,
जैमल के शिर हाथ धरयो सब,
सेवक शुद्ध भयो सुनि ज्ञाना ॥९॥
हे माता ! उन्होंने अपने अनुमान से तीन करोड़ पचास लाख जीवोद्धार का संख्या प्रमाण बताया, वस्तुत: इस निर्गुण ब्रह्म पंथ की उपासना से अनन्त जीव इस भव सागर से तिर जावेंगे । जब तक यह धरा और आकाश विद्यमान है - तब तक तिरते ही रहेंगे । फिर जयमल्ल के सिर पर हाथ धरकर उसे शिष्य बनाया । ज्ञान पाकर उसका अन्त:करण पवित्र एवं शुद्ध हो गया ॥९॥
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उन संत की अपने अनुमान,
हे माता ! उन्होंने अपने अनुमान से तीन करोड़ पचास लाख जीवोद्धार का संख्या प्रमाण बताया, वस्तुत: इस निर्गुण ब्रह्म पंथ की उपासना से अनन्त जीव इस भव सागर से तिर जावेंगे । जब तक यह धरा और आकाश विद्यमान है - तब तक तिरते ही रहेंगे । फिर जयमल्ल के सिर पर हाथ धरकर उसे शिष्य बनाया । ज्ञान पाकर उसका अन्त:करण पवित्र एवं शुद्ध हो गया ॥९॥
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उन संत की अपने अनुमान,
तीन करोड़ का कहा बखाना ।
जो लो धरती असमान रहाई,
जो लो धरती असमान रहाई,
तोलों नाम से उधरहि माई ॥
*देह अध्यास से मुक्त - महान त्याग*
होत प्रसन्न दियो निज को मत,
*देह अध्यास से मुक्त - महान त्याग*
होत प्रसन्न दियो निज को मत,
शंकर शेष लियो जु बिदेही ।
विश्व व्योहार हिं रीत तजी सब,
विश्व व्योहार हिं रीत तजी सब,
जैमल मात जु संत सनेही ।
ले उपदेश शुची जननी सुत,
ले उपदेश शुची जननी सुत,
राम जपै सत् संगति ते ही ।
संत कृपा परसाद प्रभावहिं,
संत कृपा परसाद प्रभावहिं,
चित्त लग्यो हरि सूं निज नेही ॥१०॥
प्रसन्न होकर स्वामीजी ने उसे अपना ज्ञान सिद्धान्त समझाया, जिस ब्रह्म ज्ञान से शंकर शेषनाग आदि देहाध्यास से मुक्त हो गये । ज्ञान पाकर माता और पुत्र दोनों ने ही जगत् व्यवहार की सब रीति त्याग दी, और सत्संगति करते हुये राम नाम जपने लगे । संत कृपा से उनका मन हरिभक्ति में लीन रहने लगा ॥१०॥ नोट : जयमल जी पर पूर्ण कृपा हो चुकी थी, तब एक विरोधी ने जयमल जी पर कच्ची मूठ चलाई गुरु कृपा से उनको पता चल गया, जयमल ने अपने परम गुरुदेव की कृपा से, रामरक्षा बोलना शुरू किया तब वह मूठ आकाश मे ही रुक गई, जब तक राम रक्षा पूरी नहीं हुई तब तक मूठ आकाश मे ही टिकी रही । राम रक्षा पूर्ण होते ही वापस जाकर जिस ने भेजी थी उसी को खत्म कर दिया, सत्यराम ।
(क्रमशः)
प्रसन्न होकर स्वामीजी ने उसे अपना ज्ञान सिद्धान्त समझाया, जिस ब्रह्म ज्ञान से शंकर शेषनाग आदि देहाध्यास से मुक्त हो गये । ज्ञान पाकर माता और पुत्र दोनों ने ही जगत् व्यवहार की सब रीति त्याग दी, और सत्संगति करते हुये राम नाम जपने लगे । संत कृपा से उनका मन हरिभक्ति में लीन रहने लगा ॥१०॥ नोट : जयमल जी पर पूर्ण कृपा हो चुकी थी, तब एक विरोधी ने जयमल जी पर कच्ची मूठ चलाई गुरु कृपा से उनको पता चल गया, जयमल ने अपने परम गुरुदेव की कृपा से, रामरक्षा बोलना शुरू किया तब वह मूठ आकाश मे ही रुक गई, जब तक राम रक्षा पूरी नहीं हुई तब तक मूठ आकाश मे ही टिकी रही । राम रक्षा पूर्ण होते ही वापस जाकर जिस ने भेजी थी उसी को खत्म कर दिया, सत्यराम ।
(क्रमशः)
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