🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*मन का अंग १०/८५*
.
*दादू देह यतन कर राखिये, मन राख्या नहीं जाय ।*
*उत्तम मध्यम वासना, भला बुरा सब खाय ॥८५॥*
दृष्टांत -
सूरसेन पूजा करे, पीपै पू़छा आय ।
जीन करावत मूढ वह, मोची के घर जाय ॥१५॥
एक समय ब्राह्मणों के बहकाने से टोडा का राजा सूर्यसेन मल्ल ने पीपाजी के पास आना छोड़ दिया था । अतः एक दिन पीपाजी ही राजा के यहाँ गये । द्वार पर जाने पर किसी ने राजा को कहा । राजा ने कहा - उनको कह दो राजा तो भजन में बैठे हैं । उसने आकर कहा तब पीपाजी ने कहा - वह तो मोचियों के घर खड़ा खड़ा जीन बनवा रहा है, भजन कहां कर रहा है ?
पीपाजी का उक्त वचन उसने राजा को कहा । राजा उस समय अपने मन में सोच रहा था कि घोड़े की जीन दो - तीन बार ठीक करवाई है किन्तु ठीक नहीं हुई । अब मैं स्वयं मोची के घर खड़ा रहकर कहूँगा, ऐसा कर, तब कैसे ठीक नहीं होगी ? यह मन की बात पीपाजी ने जान ली इससे राजा पीपाजी के वचन को सत्य मान कर शीघ्र उठकर आया और चरणों में पड़कर क्षमा याचना की, पीपाजी तो क्षमाशील थे ही ।
.
द्वितीय दृष्टांत -
शश चकोर मिल मीन पै, गये करावन न्याव ।
ध्यान खोल नेरे लिये, खाये करके घाव ॥१६॥
एक शश(खरगोश) और चकोर में विवाद चला । खरगोश कहता था मैं भारी हूँ और चकोर कहता था मैं भारी हूँ । उक्त प्रकार विवाद करते - २ उन्होंने आँखे मीचे ध्यानस्थ एक बिल्ली को देखा और सोचा - यह महात्मा है, हमारा न्याय कर देगी । उसके पास गये तब उसने अपना ध्यान खोलकर उनको कहा - तुम मेरे पास आ जाओ । मैं तुमको बराबर बना दूंगी । पास आये तब खरगोश को भारी बताकर उसका माँस तोड़ खाया । उक्त प्रकार उनके शरीरों में घाव कर - करके उनको खा गई ।
उक्त ८५ की साखी में कहा है - देह तो यत्न से वश किया जा सकता है किन्तु मन देह के समान नहीं रक्खा जा सकता । राजा सूर्यसेन मल्ल ने देह को तो भजनशाल में रोक रखा था किन्तु मन तो मोची के घर था । दूसरी कथा में बिल्ली ने शरीर को तो ध्यानस्थ बना रखा था किन्तु मन तो दूसरों को मारने के विचार में ही लगा था । उक्त प्रकार का साधन भगवत् प्राप्ति का साधन नहीं हो सकता ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें