बुधवार, 8 जनवरी 2014

= १३६ =


卐 सत्यराम सा 卐
सूक्ष्म मार्ग
दादू बिन पाइन का पंथ, क्यों करि पहुँचै प्राण । 
विकट घाट औघट खरे, मांहि शिखर असमान ॥१३५॥ 
टीका - आत्म - प्राप्ति का मार्ग कहिए, साधन कठिन है, क्योंकि हाथ - पाँव आदि इन्द्रियों से उस पर चलना असम्भव है । परमात्मा के मार्ग में काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, जैसे अति विकट दुर्लंघ्य पहाड़ हैं । अत: जीवात्मा वहाँ किस प्रकार पहुंच सकता है ? अर्थात सतगुरु कृपा बिना आत्म - साक्षात्कार करना अति कठिन है ॥१३५॥ 
अब परमात्मा प्राप्ति में सतगुरु कृपा का माहात्म्य कहते हैं :-
मन ताजी चेतन चढै, ल्यौ की करै लगाम । 
शब्द गुरु का ताजणां, कोइ पहुंचै साधु सुजाण ॥१३६॥ 
टीका - हे जिज्ञासुजनों ! पूर्वोक्त मार्ग को तय करने के लिए मन रूपी ताजी - घोड़े पर सचेत होकर जीवात्मा चढे और परमेश्वर के नाम में लय लगाना रूप लगाम साधे । ब्रह्मवेत्ता गुरु का ज्ञान उपदेश रूप हंटर मारे तो उपरोक्त साधनों के द्वारा कोई उत्तम जिज्ञासु मल - विक्षेप से रहित ब्रह्म - परायण होता है । इसी प्रकार संसारीजनों का मन अति चंचल घोड़ा है, जिसकी आत्माकार वृत्ति लगाम है और ताजणां = चाबुक(हण्टर) रूप गुरु उपदेश है । श्री सतगुरु भगवान् उपदेश करते हैं कि हे जिज्ञासुजनों ! जो पुरुष गुरु उपदेश में स्थिरता करके अपनी विषय उन्मुख वृत्तियों को आत्मपरायण बनाएंगे, वे ही मनरूपी घोड़े को अपने वश में करके उसके द्वारा प्रभु का प्रत्यक्ष दर्शन कर सकेंगे ॥१३६॥ 
(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)
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I can only show you the path, I cannot walk for you. And there are so many paths and there are so many different people who need different paths, so each one of you has to remember: all that I am saying is not for you.
You have to be very alert: whatever helps to strengthen your progress is for you. Whatever weakens your progress is not for you; it must have been said to somebody else. On some other path it may be helpful. To somebody else, it may be immensely needed.
Osho

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